SU चुनाव में विजयी होने पर अखिल रेड्डी और रिजुल दत्ता को हिन्दी प्रेस क्लब की ओर से बधाइयाँ और उनके कार्यकाल के लिए शुभकामनाएँ। हालांकि चुनावी दौर खत्म हो चुका है परन्तु यह चुनाव बिट्स इतिहास में एक अजीब ही प्रश्न चिह्न छोड़ गया है। आखिरी समय पर चुनाव एक अलग ही मोड़ ले गया। जहाँ बैलट पर्ची पर उम्मीद से कम नाम दिखाई दिए वहीं चुनाव के कुछ घंटों पहले ही अपना प्रचार करने वाले ‘श्रीमान NOTA’ आश्चर्यचकित संख्या में वोट प्राप्त कर दूसरे स्थान पर रहे। यह चुनाव शुरूआत से ही एक रोमांचक पथ पर था परन्तु आख़िरी समय पर तो अनपेक्षित रफ़्तार पकड़ गया।दबी हुई आवाज़ो में उठ रहे प्रश्न चिह्न को पूर्ण विराम लगाने के प्रयास में हिन्दी प्रेस क्लब ने EC से खास मुलाक़ात की। चुनाव प्रक्रिया के दौरान किए गए गलत आचरण की सज़ा संविधान में विस्तार से परिभाषित नहीं की गई है परन्तु ऐसा कुछ होने पर दुराचरण की सीमा माप कर सज़ा EC द्वारा तय की जाती है। यह तो ज़ाहिर सी बात है कि ‘श्रीमान NOTA’ के विजयी होने पर उन्हें पदाभार नहीं दिया जाता। इस पर EC के मधुसूदन ने बताया कि ऐसा कुछ हो जाने पर पुनः चुनाव आयोजित किए जाते हैं। और चुनाव के साथ-साथ पुनः चुनाव की प्रक्रिया भी संविधान में परिभाषित नहीं है। जब उनसे सिम्हा एवं ऋषभ जैन के उम्मीदवारी वापस लेने का कारण पूछा गया तो इस पर EC ने अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा कि यह उम्मीदवारों का निर्णय था और इसपर वे उम्मीदवारों का पक्ष आने तक कोई बयान नहीं देंगे। जब दूसरी ओर दोनों प्रत्याशियों से पूछा गया तो उनका कहना है कि उनपर EC द्वारा गठबंधन का आरोप लगाया गया और उन्हें EC द्वारा उमीदवारी रद्द करवाने अथवा स्वयं उमीदवारी वापस लेने का विकल्प दिया गया। इस पर सिम्हा और ऋषभ ने स्वयं ही अपनी उम्मीदवारी वापस लेने का फैसला किया और जीत की आख़िरी आस को जिंदा रखने के लिए ‘श्रीमान NOTA’ का सहारा लिया। चुनाव परिणाम आने के पश्चात उनका ये निर्णय कुछ हद तक कारगर दिखा परन्तु सफलता नहीं दिला पाया। साथ ही प्रत्याशियों का कहना है कि उन्हें इस आरोप से सम्बंधित कोई सबूत नहीं दिखाए गए परन्तु EC ने दावा किया कि उनके पास इस आरोप के पर्याप्त सबूत हैं। और EC ने सबूत सम्बंधित अधिकारियों के समक्ष पेश कर दिए हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि यह चुनाव EC ने बहुत ही नैतिकतापूर्ण आयोजित करवाए हैं और इस बात का विशेष ध्यान रखा गया है कि कहीं भी किसी प्रकार का पक्षपात न हो। इस बात को लेकर प्रत्याशी असंतुष्ट थे। चीफ़ वार्डन की हिन्दी प्रेस क्लब से हुई बात में उन्होंने कहा कि उनके समक्ष सबूत पेश किए गए थे और वे EC के स्वतन्त्र समिति होने के कारण उनके कार्य एवं निर्णय में दखल-अंदाज़ी नहीं करना चाहेंगे। यद्यपि चुनावी मंज़र शांत हो गया है तथापि हाल ही की कुछ घटनाओं की चर्चा आवाम करती रहेगी।
0 Comments
भारतीय राजनीति में छात्र राजनीति का एक बहुत बड़ा योगदान रहा है। वर्तमान में भारतीय राजनीति में कई बड़े चेहरे हैं जिनके राजनैतिक जीवन की शुरुआत छात्र राजनीति से हुई। अगर इसके इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो हम देखेंगे कि जब-जब छात्रों ने संगठित होकर किसी आंदोलन की कमान संभाली है, तब-तब विरोधियों ने उनके समक्ष घुटने टेके हैं। इसका सबसे बड़ा साक्ष्य जेपी आंदोलन जिसने 80 के दशक में पहले बिहार की व बाद में सम्पूर्ण भारत की राजनीति में जो परिवर्तन लाया था, उसके परिणाम आज हमारे सामने हैं। परंतु आज के छात्र राजनीति के हालात देखकर इतिहास दोहरने वाली क्षमता नहीं दिखाई देती है। सभी छात्र संगठन वरिष्ठ राजनैतिक दलों की युवा इकाई के रूप में कार्य कर रहे हैं। और इनका मुख्य उद्देश्य भी सिर्फ चुनावों में विजय प्राप्त करना है, चाहे उसके लिए किसी भी प्रकार के अनैतिक कार्य को अंजाम देना हो।
इसके विपरीत बिट्स की छात्रसंघ राजनीति ने सम्पूर्ण भारत की छात्र राजनीति के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। यहाँ की छात्र राजनीति की सबसे खास बात है यहाँ की चुनाव प्रक्रिया। और इसको और खास बनाता है यहाँ का चुनाव आयोग, जिसके सदस्य यहाँ के ही छात्र होते हैं। प्रचार अभियान से लेकर चुनाव परिणाम तक अनुशासन व पारदर्शिता के साथ चुनाव सम्पन्न करवाना, इसका पूरा श्रेय यहाँ के चुनाव आयोग को जाता है। आयोग द्वारा प्रचार अभियान के दौरान किसी भी प्रकार के अनैतिक कार्य को रोकने के लिए सख्त नियम बनाए गए हैं। जिसमें किस तरीके से प्रचार करना, इसकी समय सीमा इत्यादि। और अगर कोई प्रत्याशी इस आचार संहिता का उल्लंघन करता है तो उसके लिए इसमे सजा के भी कड़े प्रावधान हैं। जिसमे चुनाव प्रचार पर पाबंदी से लेकर पर्चा निरस्त करने तक के नियम है। किन-किन का होता है चुनाव?- सम्पूर्ण छात्रसंघ का प्रतिनिधित्व करने वाले अध्यक्ष व महासचिव का चुनाव होता है। इसके अलावा प्रति हॉस्टल से एक हॉस्टल प्रतिनिधि का भी चुनाव होता है जो संयुक्त छात्र समिति में अपने-अपने हॉस्टल का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रति हॉस्टल में एक कल्चरल सेक्रेटरी व स्पोर्ट्स सेक्रेटरी का भी चुनाव होता है जो की क्रमशः अपने हॉस्टल में सांस्कृतिक व खेल संबंधी गतिविधियों का दायित्व संभालते हैं। प्रति मेस के एक मेस प्रतिनिधि का भी चुनाव होता है, जिनके ऊपर मेस संबन्धित कार्यों का दायित्व होता है। चुनाव किसी का भी हो परंतु मुद्दा सभी का एक ही होता है- छात्र हितों की रक्षा व छात्रों की सुवधाओं में निरंतर सुधार। और इसे अमली जामा पहनाने के लिए हर प्रत्याशि घोषणा पत्र के तहत चुनाव में हिस्सा लेता है। घोषणा पत्र के हर बिन्दु को अमल में लाने के लिए संसाधन कैसे जुटाए जाएंगे, किस तरह उन पर कार्य होगा, इस सबके लिए चुनाव आयोग द्वारा सामूहिक चर्चा भी होती है जिसमे संस्था के आम छात्र भी हिस्सा लेते हैं। इन सब के कारण एक राष्ट्रीय अखबार ‘राजस्थान पत्रिका’ ने 25 अगस्त 2014 के प्रकाशित अंक में बिट्स के चुनाव पर एक लेख लिखा जिसमे यहाँ की चुनाव प्रक्रिया की तुलना अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव की चुनाव प्रक्रिया से की थी। प्रथम वर्षीय छात्रों का पहला कॉलेज चुनाव- संस्थान के नए-नवेले छात्रों के लिए यह चुनाव खास भी होगा और परेशान करने वाला भी। खास इसलिए कि सभी के लिए यह कॉलेज में आने के पहला चुनाव होगा व इसलिए भी क्योंकि कुछ के लिए यह पहली बार मतदान करने का मौका भी होगा। इसे लेकर छात्र काफी रोमांचित होंगे। परंतु यह चुनाव कुछ समय के बाद उनके लिए परेशानी का सबब भी बन जाएगा। इसका कारण यह है कि प्रत्याशियों द्वारा प्रथम वर्षीय छात्रों को सर्वाधिक टार्गेट किया जाता है। इसका मुख्य कारण है कि प्रत्याशी के इतिहास के बारे में आपको जानकारी नहीं होती है। इसलिए आपको लुभाने के लिए प्रचारक डोर टू डोर प्रचार करते हैं। जिससे प्रचारक छात्रों के कमरे पर आकर घंटों प्रत्याशी के पूर्व में किए गए कार्यों का विवरण देते हैं और हर बार आपको उन्हे अपना परिचय भी देना होता है। शुरू के लिए तो यह सब ठीक है परंतु कुछ समय के पश्चात यह सब आपको परेशान कर देगा। एक बात ध्यान में रखिए, इन सब चीजों से परेशान न होकर आप इन सबका आनंद लीजिए और यह आपके लिए सुनहरा मौका है अधिकाधिक सीनियर छात्रों के साथ संपर्क बढ़ाने का। बिट्स पिलानी के पिलानी कैम्पस में ऐसी कई खास बातें हैं जोकि इसे अन्य कॉलेजों से बेहतर बनाती हैं| उन्हीं में से एक है यहाँ प्रयोग किए जाने वाले कुछ खास शब्द और उनके नए अर्थ, जिसे हम बिट्सियन लिंगो कहते हैं| प्रथम वर्षीय छात्रों में अब तक लगभग आप सभी लोग लाइट शब्द से अवगत हो गए होंगे| इसके साथ साथ आम तौर पर प्रयोग में आने वाले और भी कई शब्द हैं जिनसे आपको अवगत करवाना हम ज़रूरी समझते हैं| आप में से कई लोग अब तक अपने रूम पॉप व रूम मॉम से मिल चुके होंगे, बुक पॉप व बुक मॉम भी बना चुके होंगे अब एस.डब्ल्यू.डी से अपने आई.डी. पॉप व मॉम का भी पता लगा लीजिए, और हाँ! इन सभी से ट्रीट लेना मत भूलिएगा| अपने रूमी के साथ अब तक आपकी दोस्ती काफ़ी अच्छे से हो गई होगी या हो सकता है कि आपको आपका रूमी बड़ा अजीब लगे, अगर ऐसा है तो आपका साइडी, या ओप्पी या कोई और विंगी आपका अच्छा दोस्त ज़रूर बन जाएगा| अभी बस क्लास की शुरुआत हुई है और कुछ लोगों ने लाईब (लाइब्रेरी) जाकर घोटना शुरू कर दिया होगा| अभी सबके सपने हर कोर्स में सी.टी.(कोर्स टॉपर) बनने के ज़रूर हैं लेकिन मिड सेम के मार्क्स आने के बाद तो ऐव (एवरेज) प्लस मार्क्स में ही मन संतुष्ट हो जाता है| छात्र संघ के चुनाव के गहमागहमी भी आपको महसूस हो रही होगी| आपको ही तो वोट डाल कर अपने लिए जेन सेक (जेनरल सेक्रेटरी), प्रेज़ (प्रेसिडेंट ), एच-रेप (भवन प्रतिनिधि) एवं मेस-रेप (मेस प्रतिनिधि) इत्यादि का चुनाव करना है| भवन में हो रही किसी भी परेशानी को आप चौकी (चौकीदार) भैया से बता सकते हैं| कुछ ही समय में आप सभी को अपने अपने असौक के सीनीयर्स भी मिलेंगे जिनके साथ आपको अपने संस्कृति से जुड़े रहना का मौका मिलेगा और ग्रब्स के दौरान अपने अपने क्षेत्र के लज़ीज़ व्यंजनों का लुत्फ़ उठाने का भी अवसर मिलेगा| सुबह सुबह कैम्पस के बाहर नूतन की चाय तो स्वाद के मामले में कनॉट की एम.एन.बी. को भी पीछे छोड़ देती है| जब महीना खत्म होने वाला हो और पॉकेट मनी खत्म होने वाली होती है तो मेस के दर्दनाक अनुभव से बचाता है हमारा आई.सी. (इंस्टी कैंटीन)| बिट्स में आई.सी शब्द कभी कभी ही सुनने में अच्छा लगता है| कई बार आई.सी. (इंस्ट्रक्टर इन चार्ज) के पास जाने का अनुभव अच्छा नहीं होता| जेन में तो हम बिट्सियन्स इन्हीं शब्दों का प्रयोग करते हैं, इसके अलावा और कई चीज़ें हैं जिनका अर्थ काफ़ी ऑब है इसलिए उन शब्दों को लाइट लेना ही सही होगा|
बिट्स पिलानी, पिलानी कैम्पस को उसका नया निदेशक प्रोफ़ेसर अशोक कुमार सरकार के रूप में प्राप्त हुआ है| आई.आई.टी. खड़गपुर से अपनी पी.एचडी. पूर्ण करने वाले प्रोफ़ेसर कुमार इस जिम्मेदारी के निर्वाहन के लिए उत्तम प्रत्याशी हैं| प्रोफ़ेसर रघुरामा पिछले 5 वर्षों से बिट्स के पिलानी परिसर के निदेशक के रूप में अपना अहम योगदान दे रहे हैं और अब अपनी इच्छानुसार वे शिक्षण को प्राथमिकता देते हुए गोवा परिसर में शिक्षक के रूप में काम करना चाहते हैं| प्रोफ़ेसर कुमार लंबे समय से बिट्स पिलानी परिसर में जानपद अभियांत्रिकी के वरिष्ठ शिक्षक रहे हैं| उन्हें परिवहन आयोजन एवं 'पे़वमेंट मेंटेनेंस’ जैसे विषयों पर काम व खोज करना पसंद है| उन्होंने शिक्षण के साथ-साथ खोज का दामन कभी नहीं छोड़ा और वे समय-समय पर कई राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में अपने कार्य को प्रकाशित करते रहे हैं| केवल इतना ही नहीं, उन्होंने कई पुस्तकों में भी अपना योगदान दिया, कुछ पुस्तकों में संपादक की भूमिका निभाई और कुछ में स्वयं लेखक की| बिट्स पिलानी परिवार उन्हें इस कैम्पस के नए निदेशक के रूप में चुने जाने पर शुभकामनाएँ देता है, और आशा करता है कि आने वाले समय में हमारा संस्थान नई बुलंदियों को छुएगा|
16 मार्च 2015 को 'अपोलो हॉस्पिटल'- चेन्नई से डॉक्टर पी. गणपति एवं उनके कुछ साथी डॉक्टरों ने बिट्स पिलानी कैम्पस का दौरा किया| इस दौरे का मुख्य कारण था बिट्स के कैम्पस पर उपलब्ध चिकित्सा की सुविधाओं का जायजा लेना एवं इसमें ज़रूरी बदलावों का सुझाव देना| डॉक्टर गणपति ने ने अपने इस दौरे का पूरा श्रेय बिट्स पिलानी छात्र संघ के महा सचिव आशुतोष मुन्धरा तथा गरिमा गुप्ता, एस. मैक हेड एवं पूरी एस.मैक टीम को दिया| उन्होंने हमें बताया कि उनके इस दौरे से वे भावनात्मक रूप से भी जुड़े हैं, क्योंकि जब उनका बेटा आई.आई.टी में पढ़ रहा था तब उसे सेलेब्रल मलेरिया हो गया था जिसका पता चलने में भी काफी देरी हो गयी थी, लेकिन ईश्वर की कृपा से वह वापस स्वस्थ हो गया| उनका मानना है कि चिकित्सा में तकनीकी कमी के कारण ही बीमारी का देर से पता चल पाया| उन्होंने बताया कि देश के सभी बड़े कॉलेजों में ऐसी इक्का-दुक्का कहानियाँ ज़रूर होती हैं जहाँ कभी बीमारी का पता चलने में बहुत देर हो गयी हो या बीमारी समय रहते पकड़ में आ भी गयी तो अभिवावकों ने सोचा हो कि किसी विशेषज्ञ से एक बार फिर रिपोर्ट आदि जंचवा लें| ऐसे सभी दुविधाओं का अब निवारण कर पाना आसान है| उनकी नज़रों में बिट्स पिलानी के पास वे सभी संसाधन उपलब्ध हैं जिनकी मदद से यहाँ टैली सर्विस मेडिकल सुविधाएं शुरू की जा सकती हैं| पिलानी में इसकी आवश्यकता इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि यहाँ हर समय विशेषज्ञों का उपलब्ध रहना लगभग नामुमकिन है| माना कि सभी विद्यार्थी 17 से 25 वर्ष की आयु के बीच हैं एवं उन्हें स्वास्थ्य सेवाओं कि विशेष आवश्यकता नहीं है परन्तु कब किसे किस रूप में इन सेवाओं की ज़रूरत पड़ जाए यह बता पाना मुमकिन नहीं है| निदेशक जी. रघुरामा से हुई बातचीत में उन्होंने अपने सभी सुझावों को उनके समक्ष पेश किया| इसके बाद उन्होंने बिट्स के मेडिकल सुप्रिटेंडेंट से भी मुलाक़ात की जिनके साथ बिरला सार्वजनिक चिकित्सालय के अन्य डॉक्टर भी मौजूद थे| उनसे हुई बातचीत भी सफल रही एवं कुछ मामूली शर्तों के साथ इस नयी सुविधा का उन्होंने स्वागत किया| इसके बाद अगला कदम यह होगा कि आगे इस राह पर क्या-क्या काम करना है? इसका एक प्लान ऑफ एक्शन तैयार करना एवं इसको अमल में लाना होगा| डॉक्टर गणपति अपने बिट्स के दौरे से काफी संतुष्ट दिखाई पड़े और उन्होंने बिट्स दुबारा आने की इच्छा जताई, उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि बिट्स के छात्रों को भी चिकित्सा क्षेत्र से जोड़ें एवं छात्रों के ज्ञान, कल्पना शक्ति एवं सुझावों का प्रयोग करके चिकित्सा को देश के कोने-कोने तक पहुंचायें| उन्होंने सभी को धन्यवाद देते हुए कहा कि 25 घंटे से भी कम समय तक बिट्स कैम्पस में रहने के बावजूद वे यहाँ से बहुत संतुष्ट होकर जा रहे हैं| वे चाहते हैं कि यह सुविधा जल्दी से जल्दी शुरू की जाए इसलिए वे अपनी ओर से किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं होने देंगे|
छात्रों के कमरों में मैले कपड़ों का ढेर ऊँचा होता जा रहा है और SU के पदाधिकारियों एवं धोबियों के बीच तनाव अब भी बरकरार है, ऐसे में इस समस्या का हल निकालने और laundromat सेवा से वंचित छात्रों के लिए जल्द से जल्द कपड़ों की धुलाई की व्यवस्था करने का भीषण दबाव छात्रसंघ पर है। ऐसे में छात्रों के विकल्प, संस्थान एवं छात्रसंघ की पहल और मौजूदा समय की स्थिति का एक विवरण यहाँ प्रस्तुत है।
Laundromat: समस्या की शुरुआत आप सभी को याद दिलाते हुए हम आपको यह बताना चाहेंगे कि कैम्पस में Laundromat सेवा प्रारंभ करने की पहल मौजूदा समय में छात्रसंघ अध्यक्ष पदाधिकारी साई प्रणीत ने की थी। ऑडी-डीबेट के दौरान चुनाव आयोग ने laundromat सेवा से धोबियों की आजीविका के खतरे में आने का मुद्दा उठाया था। हालांकि उस वक्त अध्यक्ष पद के उम्मीदवार प्रणीत ने अपने सुझावों से चुनाव आयोग को संतुष्ट कर दिया था, पर उस वक्त किसी ने धोबियों के वृहद स्तर पर इस सेवा के विरोध में प्रदर्शन के बारे में सोचा भी न होगा। उस समय चुनाव आयोग और ऑडीटोरियम में मौजूद छात्रों को संतुष्ट करने वाले प्रणीत शायद अपने सुझावों और बातों से धोबियों को बहलाने में असमर्थ रहे; कम से कम धोबियों की हड़ताल तो इसी तरफ ही इशारा करती है। धोबी यूनियन की माँगें :- छात्रसंघ अध्यक्ष साई प्रणीत ने धोबी यूनियन की माँगों की चर्चा करते हुए बताया कि laundromat धोबियों द्वारा सेवा की एक साल की अवधि समाप्त होने पर इस सेवा के पूर्ण निलम्बन के अलावा भी कुछेक बेतुकी माँगे पेश की गई थी। जहाँ मौजूदा श्रामिकि बढ़ाने की शर्त को सही ठहराते हुए इसे स्वीकार कर लिया गया तो वहीं laundromat पिक-एंड-ड्राप सेवा के निलम्बन की शर्त को छात्रों की असुविधा का कारण मानते हुए नकार दिया गया। हालांकि यूनियन इस सेवा को अपना दुश्मन बताता रहा और इसे laundromat के प्रति बढ़ते हुए छात्रों के झुकाव का कारण बताता रहा। प्रणीत ने ज्ञात करवाया कि laundromat प्रणाली केवल 500 छात्रों को ही सेवा प्रदान करती है एवं 3500 से भी अधिक छात्र अब भी कपड़ों की धुलाई के लिए धोबियों पर ही निर्भर हैं। साथ ही भविष्य में भी laundromat सेवा के विस्तार की भी कोई योजना नहीं है, ऐसे में laundromat सेवा के निलम्बन की शर्त पूर्णतया बेतुकी है। संस्थान का रवैया :- छात्र प्रतिनिधियों की माने तो संस्थान इस द्वंदव में किसी भी दल का पक्ष लेने को तैयार नहीं है। संस्थान के निदेशक श्री रघुरामा ने हड़बड़ी में कोई भी फैसला लेने से इंकार करते हुए दोनों पक्ष धोबी यूनियन एवं छात्रसंघ को बातचीत के ज़रिए कोई बीच का हल निकालने की सलाह दी है। आने वाले वर्षों में विश्व के कई कोनों से बिट्स में प्रवेश लेने वाले विदेशी छात्रों के हितों को ध्यान में रखते हुए वे laundromat सेवा के निलम्बन को गलत मानते हैं पर साथ ही साथ वे बिट्स को कई वर्षों से अपनी सेवा देने वाले सैकड़ों धोबियों की आजीविका छिन जाने के भी घोर विरोध में हैं। एक तरह से निदेशक ने फैसला छात्रों के ऊपर छोड़ दिया है| उनके अनुसार छात्र ही सभी के हितों को ध्यान में रखते हुए सही निर्णय लेंगे। SAC ऐम्फिथियेटर सभा :- मौजूदा स्थिति छात्रों के सम्मुख इस धोबी-हड़ताल समस्या के सभी पहलू रखने एवं संस्थान और छात्रसंघ के प्रयासों का ब्यौरा देने हेतु SAC ऐम्फिथियेटर में 28 जनवरी की शाम एक लघु सभा का आयोजन हुआ। वहाँ मौजूद छात्रों को सम्बोधित करने हेतु छात्रसंघ के अध्यक्ष साई प्रणीत, महासचिव आशुतोष मुंधड़ा एवं SSMS अध्यक्ष उपस्थित थे। मौजूदा स्थिति को साफ करते हुए प्रणीत ने बताया कि धोबियों की सभी पुरानी माँगे न पूरी होने पर उन्होंने तत्कालीन प्रभाव से laundromat सेवा के निलम्बन की शर्त रखी है जिसके पूरे होने पर ही वे अपनी सेवा पुनः प्रारम्भ करेंगे। प्रणीत ने कहा कि अपनी कुशलता से उपभोक्ताओं को संतुष्ट करने की जगह सभी धोबी धुलाई सेवा पर एकछत्र अधिकार चाहते हैं। आशुतोष के अनुसार छात्रों के पास विकल्प होने चाहिए ताकि धोबी आने वाले समय में मनमानी न कर सकें। laundromat सेवा प्रदाता स्मार्ट-वॉश ने मशीनों की संख्या बढ़ा कर एवं दो पालियों में धुलाई कर सभी 4000 छात्रों के कपड़ों की साप्ताहिक धुलाई का दम भरा है। प्रणीत के अनुसार ऐसे में उन्हें धोबी यूनियन की बेतुकी शर्तों के सामने न झुकने का तर्क भी मिल गया है। प्रणीत ने SAC ऐम्फिथियेटर में उपस्थित सभी जनों से धोबी सेवाओं के निलम्बन के फैसलों पर विचार माँगे। धोबी यूनियन से आखिरी बातचीत के सभी प्रयासों के विफल होने के बाद laundromat सेवा का विस्तार ही अंतिम विकल्प बताया गया। सभा समाप्ति के बाद आशुतोष, प्रणीत एवं SU के सदस्यों ने प्रत्येक भवन में जाकर छात्रों से बात की और उनका समर्थन माँगा। इस मुद्दे की प्रगति को देखते हुए लग रहा है कि जल्द ही कोई फैसला लिया जाएगा और छात्रों के कमरों में लगे कपड़ों के ढेर की ऊँचाई को कम होने में वक्त नहीं है। ‘गुरुकुल’- आज यह नाम बिट्स मे बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है और इस मुकाम तक इसे पहुँचाने में एक व्यक्ति जिसका महत्त्वपूर्ण योगदान है वो हैं- सी कार्तिक| सभी जूनियर्स में कार्तिक भैया के नाम से मशहूर एवं व्यापारी माता-पिता के इकलौते पुत्र ने अब तक जो भी हासिल किया है वह सब कड़ी मेहनत तथा दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर किया है| सन् 1996 में चौथी कक्षा के विद्यार्थी के तौर पर उन्हें बी॰एस॰एस॰ में दाखिला मिला| परन्तु समयोजन ना होने के कारण जल्द ही उन्हें परेशानी आने लगी| तब उनके छात्रावास के चीफ़ वार्डन श्री एम.सी.पाण्डेय तथा उनकी पत्नी श्रीमती पूनम पाण्डेय ने उनका माता-पिता के समान ख्याल रखा| विद्यालय काल से ही कार्तिक प्रतिभाशाली व शर्मीले थे| वे लगातार तीन बार राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी वाद-विवाद प्रतियोगिता के विजेता रहे तथा दो बार विद्यालय स्तर पर श्रेष्ठ अभिनेता| उन्हें शुरु से ही पढ़ाने का शौक था और जब उन्हीं के सहपाठी और विद्यार्थी प्रदीप कसाना को उनके साथ आदित्य बिरला छात्रवृत्ति मिली तब वे बहुत गर्वित हुए| बारहवीं कक्षा में वे विद्यालय मे अव्वल आए| इसके पश्चात् वह कुछ कठिनाई के बाद बिट्स में प्रवेश लेने में सफल हुए| इसी दौरान उन्होंने ‘सारेगामापा’ के ऑडिशंस में दो चरणों में सफलता प्राप्त की, परन्तु पढ़ाई के कारण उन्होंने अपना नाम वापिस ले लिया| मयूज़िक क्लब के ऑडिशंस में उन्हें सफलता नहीं मिली| उसी वर्ष उन्होंने अपनी पहली प्रस्तुति ‘इनब्लूम’ के दौरान दी, जहाँ उन्होंने बहुत कुछ सीखा तथा उन्हें यह भी ज्ञात हुआ कि बिट्स में प्रतिभा की कमी नहीं है| अगले वर्ष वे एक सीनियर के कहने पर अनिल राय सर से मिले जिन्होंने उन्हें संगीत सिखाने की हामी भरी| अनिल सर ने उनके गायन में जो कमियाँ थी उन्हें दूर करने में कार्तिक की सहायता की| अनिल सर ने कार्तिक को यह भी सिखाया कि कभी अभिमान नहीं करना चाहिए, हमेशा अपने व्यवहार में सरलता रखनी चाहिए| तृतीय वर्ष में भी वे म्यूज़िक क्लब तथा रागमलिका में चयनित ना हो पाए| तब उन्होंने देखा कि और भी ऐसे छात्र हैं जिनमें सीखने की ललक है| इसी से उन्हें गुरुकुल बनाने का ख्याल आया जहाँ सब एक दूसरे से सीखें तथा संगीत सम्बंधित ज्ञान एक दूसरे के साथ बाँटें| यह कार्य मुश्किल था, कठिनाइयाँ भी बहुत आई पर अन्त में उनकी सफलता रंग लाई और 20 अगस्त 2008 को गुरुकुल की स्थापना की गई| इस कार्य में कई लोगों का योगदान रहा जिसमें मुख्य रूप से अनिल राय सर, एन.वी.एम राव सर, एस.के. वर्मा सर, उनके सहपाठी अभिजीत दत्ता व अनेक दोस्त एवम् जूनियर्स शामिल थे| गुरुकुल का शुरुआती समय मुश्किलों भरा था, न वाद्य यन्त्र और न ही कोई आर्थिक सहायता| लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी| हर मुश्किल समय में उन्होंने मोर्चा सम्भाले रखा, धैर्य से काम लिया एवं संगीत के प्रति समर्पण भाव को कम न होने दिया| उतार-चढ़ाव तो हमेशा आते रहतें हैं परन्तु हार ना मानने की भावना हमेशा होनी चाहिए| अपने चतुर्थ वर्ष तक वे गुरुकुल के साथ पढ़ाई भी कर रहे थे और पढ़ाई में उन्होंने अपनी पकड़ कभी भी ढीली नहीं होने दी| विभिन्न परीक्षाओं में उत्तीर्ण होकर वे 5 विश्वविद्यालयों में स्वीकृत हुए परन्तु उनका मन जाने का नहीं था| एक मित्र के ईमेल के बाद वे फिर से पिलानी आ गए| पहले एम.एस.सी. के समय डॉ॰ राजकुमार गुप्ता व डॉ. अंशुमान डाल्वी की देखरेख में प्रोजेक्ट किया और तत्पश्चात डॉ॰ राजकुमार गुप्ता के अंतर्गत व डॉ. मंजुलादेवी की देखरेख में अपनी पी.एच.डी का कार्य शुरु किया, साथ ही गुरुकुल के कार्यो में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते रहे| इस सभी के दौरान उनके मित्र कपिल ढाका, डॉ॰ नेहा गुप्ता तथा मिस्टर एडविन ने उनका मनोबल ऊँचा रखा| वर्ष 2011 में गुरुकुल छात्र संघ में शामिल हुआ| अब गुरुकुल पहले के मुकाबले ज्यादा व्यवस्थित है और शुरुआत से ही इसमें कुछ रिवाज़ हैं जैसे हर गुरुकुल संध्या में एक स्वरचित गान होता है तथा संस्थान के हर समारोह में गुरुकुल प्रस्तुति देता है| कार्तिक भैया अब तक अपने कई पी.एच.डी सम्बन्धित लेख प्रकाशित करवा चुके हैं, और कई लिखित एवं मौखिक प्रस्तुति दे चुके हैं| वे इसी सिलसिले में अपनी पी.एच.डी के प्रथम वर्ष में ही जापान भी गये थे| कार्तिक भैया अपनी सफ़लता का श्रेय अपने माता-पिता को देते है| उन दोनों ने उनके लिए अनगिनत कुर्बानियाँ दी| उनकी माँ बारहवीं तथा पी.एच.डी के समय भी लम्बे समय तक पिलानी के प्रतिकूल मौसम में रुकी| संगीत के लिये भी उन्होंने ही नन्हे कार्तिक को प्रेरित किया था| उनके पिता ने भी उनका मनोबल कभी गिरने नहीं दिया व हमेशा मजबूत सहारा बन कर साथ रहे| कार्तिक भैया ने अन्त में यही सन्देश दिया कि हमेशा बढ़ा सोचो और उसे पूर्ण करने में पूरी लगन से जुट जाओ| बुरी स्थितियाँ हमेशा आती है, हमें उनसे लड़ना सीखना चाहिए| उनका मानना है कि असफ़लताएँ मनुष्य को निखरने मे मदद करती हैं| सफ़लता मिलना कठिन है, पर सफ़लता मिलने पर खुद में अभिमान न आने दो| सबसे महत्वपूर्ण बात माता-पिता सच्चे मार्गदर्शक एवं शुभचिन्तक होते हैं, उनका हमेशा सम्मान करना चाहिए| यह सेमेस्टर कार्तिक भैया का अन्तिम समेस्टर है| हम आशा करते हैं कि आगे का जीवन उनके लिए सुखमय हो व इसी के लिये उन्हें शुभकामनाएँ भी देते हैं| 29 जनवरी 2015 की तारीख ने बिट्स के इतिहास में हमेशा- हमेशा के लिए अपनी जगह कायम कर ली। इसका श्रेय जाता है, नोबल शान्ति पुरस्कार 2014 से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी जी को जिन्होंने अपने आगमन से हमें नवाजा। 11 बजकर 20 मिनट पर पूरा सभागार तालियों से गूँज उठा जब कैलाश सत्यार्थी जी हमारे बीच पधारे। रागमलिका की ओर से प्रस्तुत सरस्वती एवं गणेश वंदना के साथ समारोह आरम्भ हुआ। परन्तु सभागार में बैठे बिट्सियन्स एवं स्कूली बच्चों को इंतज़ार था तो बस श्री कैलाश सत्यार्थी जी का। वही कैलाश सत्यार्थी जिन्होंने आज से लगभग 35 वर्ष पूर्व सन 1980 में बचपन बचाओ आंदोलन की नींव रखी थी और जो आज दुनिया भर में पीड़ित एवं शोषित बच्चों के लिए मसीहा हैं। देश-विदेश के अनगिनत पुरस्कारों से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी जी के चेहरे का तेज देखते ही बनता है। तत्पश्चात प्रोफ़ेसर बिजेंद्र नाथ जैन ने श्री कैलाश सत्यार्थी के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किए एवं उनको शॉल पहनाकर सम्मानित किया। जैसे ही कैलाश सत्यार्थी जी मंच पर आए, एक बार फिर सभागार में सभी उनके सम्मान में खड़े हो गए एवं तालियों से उनका स्वागत किया। सत्यार्थी जी ने कहा कि पिछले 3 महीनों में उन्हें लगभग 11,500 निमंत्रण आए, जिनमें कई अन्य इन्जीनियरिंग संस्थान भी थे। सर्वप्रथम वे विदिषा स्थित अपने कॉलेज गए एवं बिट्स पिलानी को अपने दौरे के लिए उन्होंने दूसरे कॉलेज के रूप में चुना। कॉलेज का माहौल देख उन्होंने भी अपने कॉलेज के दिनों के कुछ किस्से हमारे साथ बाँटे। उन्होंने बताया कि कैसे कॉलेज में पढ़ने वाली इकलौती लड़की के साइकिल के पीछे 30 अन्य छात्रों की साइकिलें हुआ करती थीं। इसके पश्चात उनकी बातों ने बाल मजदूरी का रुख किया, उन्होंने हम सभी को इस बात से अवगत कराया कि कैसे लाखों बच्चे आज भी इस सामाजिक दानव का शिकार हैं। कहीं उन्होंने छोटे-छोटे बच्चों को मजदूरी करते देखा तो कहीं उन्हीं बच्चों के हाथों में बंदूकें देखी हैं। किशोर लड़कियों के साथ जानवरों जैसा सलूक, उनके साथ दुष्कर्म व यौन उत्पीड़न जैसी वारदातें कई देशों में चल रही हैं। आखिर इसमें उनका क्या दोष है? क्या उन्हें सपने देखने का अधिकार नहीं है? ऐसे कई सवाल हैं जिन्हें वे दुनिया के सामने लाने के लिए अथक मेहनत कर रहे हैं। उन्होंने अपनी चिंता ना करते हुए, ना जाने कितने ही जख्मों को सहते हुए पिछले तीन दशकों में 140 देशों में हज़ारों बच्चों को उनका बचपन लौटाने की मुहिम छेड़ी है। पेशावर में विद्यालय पर आतंकवादियों ने हमला कर बेक़सूर बच्चों को अपना शिकार बनाया, आज इस समय जब आप यह पत्रिका पढ़ रहे हैं इसी क्षण ना जाने कितने ही बच्चों का व्यापार इराक व यमन जैसे देशों में हो रहा है, आज भी कोई नहीं जानता की नाइजिरिया में बोको हराम ने जिन लड़कियों को बंधक बनाया था उनमें से 200 बच्चियाँ किस हाल में हैं। इन बच्चों की आवाज़ बनकर श्री सत्यार्थी जी ने एक उम्मीद जगाई है, और हिन्दी प्रेस परिवार आशा करता है कि इस उम्मीद और उनकी सोच को हम बिट्सियन्स भी अपनाएंगे। श्री कैलाश सत्यार्थी जी ने पुरस्कार में जीती हुई धन राशि को भी इन्हीं बच्चों के खोए हुए बचपन के अधीन करने का फैसला लिया है। उन्होंने अपने इस पुरस्कार को अपनी धरती एवं अपने सभी देशवासियों को समर्पित करते हुए अपने पदक (मेडल) को भी राष्ट्रपति जी को सौंप दिया। उन्होंने देश के सभी युवाओं को 3-D के फॉर्मूला को अपनाने की नसीहत दी... ड्रीम, डिस्कवर और डू। उन्होंने अपने स्कूल के पहले दिन की कहानी हमें सुनायी, कि उनके स्कूल के दरवाजे के सामने एक मोची का बच्चा काम कर रहा था। पाँच साल की उम्र में ही जब उन्होंने उस बच्चे की दुर्दशा देखी तो उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने अपने अध्यापकों से पूछा कि वो लड़का हमारे साथ क्यों नहीं पढ़ सकता? उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला, यह बात उनके दिल में घर कर गयी कि ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब उनके अध्यापकों के पास भी नहीं था। विद्युत अभियांत्रिकी (इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग) की डिग्री पाने के बाद वे ऐसे हर सवाल के जवाब को पाने के सफर पर निकल पड़े और 140 से भी अधिक देशों में बच्चों के बीच खुशियाँ बाँटकर हमारे बीच खड़े थे। उन्होंने अपने इस सफलता का श्रेय अपने साथ काम करने वाले हर कर्मचारी को दिया एवं अपनी जीवन-संगिनी को भी धन्यवाद कहा। इस सफर में अपने दो साथियों को खोने का दुःख भी उन्होंने ज़ाहिर किया। उन्होंने आगे बताया कि कैसे आज भी 17.5 करोड़ बच्चे बाल श्रम का शिकार हैं तथा दूसरी ओर 20 करोड़ लोगों के पास नौकरी नहीं है। अगर सब साथ मिलकर मसले का हल निकालना चाहें तो बाल श्रम का पूरी तरह से सफाया भी मुमकिन है। उदाहरण स्वरूप उन्होंने दक्षिणी एशिया के कालीन कारोबार के बारे में बताया कि 15 वर्ष पहले यहाँ 10 लाख बच्चे बाल श्रम से ग्रसित थे वहीं आज केवल 2 लाख बच्चे इस कारोबार का हिस्सा हैं। अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है लेकिन उम्मीद की किरण अब पहले से अधिक तेज है। हम भी उम्मीद करते हैं कि जिस प्रण के साथ श्री कैलाश सत्यार्थी जी अपने इस सफर पर चले थे उसे वे ज़रूर पूरा कर सकें एवं उनके इस सपने को साकार करने में हम अपनी भूमिका ज़रूर निभाएंगे तथा अपने स्तर पर बाल श्रम के खिलाफ जितना हो सकेगा उतना काम करेंगे। हमें गर्व है कि महात्मा गाँधी की भूमि में आज भी उनकी विचारधारा वाले लोग हमारा मार्गदर्शन करने के लिए मौजूद हैं। प्लेसमेंट विभाग के समन्वयक के साथ हुए हिंदी प्रेस क्लब के साक्षात्कार में उन्होंने शीत अवकाश के दौरान हुए प्लेसमेंट ड्राइव के परिणामों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि नौकरी पाने वाले छात्रों की संख्या लगभग गत वर्ष जितनी ही थी परंतु इस वर्ष कंपनियों की प्रोफ़ाइल पिछले वर्ष से बेहतर थी। इसके परिणामस्वरूप इस वर्ष, औसत पैकेज 5.2 लाख से बढ़कर 6 लाख तक पहुँच गया।
पिछले वर्ष इस दौरान यांत्रिक (मैकेनिकल) अभियांत्रिकी के छात्र नौकरी पाने वालों में शीर्ष पर थे। परंतु इस वर्ष प्रथम छमाही के दौरान ही यांत्रिक अभियांत्रिकी के अधिकतर छात्रों ने नौकरी प्राप्त कर ली थी, जिसके चलते यह वर्ष सभी शाखाओं के लिए समान रहा। जनपद (सिविल) अभियांत्रिकी से संबंधी कम कंपनियाँ आईं परंतु इन कंपनियों ने अधिक छात्रों को नौकरी का प्रस्ताव दिया। इस बार एम.ई. के छात्रों को भी नौकरी के प्रस्ताव दिए गए। इस वर्ष कुल 14 कंपनियों ने विंटर ड्राइव में भाग लिया। इस वर्ष ग्रीष्म अवकाश के दौरान होने वाली इंटर्नशिप के लिए प्लेसमेंट विभाग फरवरी एवं मार्च के माह में कार्यरत होगा। उनके अनुसार इस समय प्लेसमेंट एवं इंटर्नशिप को एक साथ संभालना मुश्किल होगा, इसलिए उनका ध्यान इस समय केवल प्लेसमेंट्स की दिशा में केन्द्रित है। परंतु अभी एजवर्ब, ओपेरा, ओरेकल और माइक्रोसॉफ़्ट ने इंटर्नशिप के लिए छात्रों का चुनाव करना प्रारम्भ कर दिया है। दूसरी छमाही में प्रारम्भ हुए प्लेसमेंट प्रक्रिया के दूसरे सत्र में अभी तक के आंकड़े बेहद प्रभावशाली हैं। इस वर्ष केवल 8 दिनों के भीतर 54 प्रतिशत छात्रों को नौकरी के प्रस्ताव दिए जा चुके है। इस सत्र में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है। भारत में बिट्स के तीनों कैंपस में से पिलानी कैंपस के आंकड़े सबसे अधिक प्रभावशाली है। जहां हैदराबाद में 2 जनवरी से एवं गोवा में 6 जनवरी से प्लेसमेंट प्रक्रिया प्रारम्भ हो गयी थी वहीं पिलानी में 14 जनवरी से इस प्रक्रिया का आगाज हुआ। इसके उपरांत भी पिलानी कैम्पस से अधिकतम प्रतिशत छात्रों को नौकरियाँ प्राप्त हुई है। कुल 212 छात्रों को इन 8 दिनों के भीतर नौकरियाँ प्रस्तावित की गई। गत वर्षों के तुलना में इस वर्ष की प्लेसमेंट प्रक्रिया बेहतर आंकड़े प्रस्तुत कर रही है। इस सत्र के शानदार शुरुआत के बावजूद भी प्लेसमेंट विभाग ने इस बार के लिए कुछ खास उम्मीदें नहीं बांधी है। उनके समन्वयक का मानना है कि उनका एवं उनके दल का कार्य सिर्फ छात्रों को अवसर प्रदान करना है। अब आगे बढ़कर उस अवसर को नौकरी में तब्दील करना छात्रों के ही हाथ में है। प्रथम छमाही एवं दूसरी छमाही में प्लेसमेंट सत्र के भेद को स्पष्ट करते हुए उनहोंने कहा कि किसी भी सत्र में प्लेसमेंट प्रक्रिया में भाग लेने में कोई अंतर नहीं होता है। किसी भी सत्र के अपने कोई नफा या नुकसान नहीं हैं। कंपनियाँ केवल एक वर्ष के आधार पर नहीं अपितु गत 2-3 वर्षों के आंकड़ों का अध्ययन कर ही निश्चय करती है कि वे कब आना चाहती हैं। यहाँ ऐसा चलन रहा है कि जो छात्र अधिक अंक प्राप्त करते हैं, वे प्रथम छमाही में कैम्पस पर रहना पसंद करते हैं और फलस्वरूप अधिकतम कंपनियाँ भी प्रथम छमाही में ही आ जाती है। यदि छात्र ऐसा निर्णय लेते हैं कि वे दूसरे छमाही में प्लेसमेंट प्रक्रिया में भाग लेंगे तो कंपिनियां भी उनके लिए अवश्य ही आएंगी। इस वर्ष प्लेसमेंट विभाग को छात्रों से सम्बंधित जो प्रक्रिया मिली, वो बहुत निराशाजनक थी। अधिकतम कंपनियों की यह शिकायत रही कि छात्रों की तकनीकी योग्यता बेहद कम थी। बिट्स पिलानी के छात्रों का व्यक्तित्व हमेशा से ही प्रभावशाली रहा है जिसके कारण ही कंपनियाँ हमेशा से ही अच्छी संख्या में छात्रों को नौकरियाँ प्रदान करती रहीं हैं। परंतु हर वर्ष आने वाली कंपनियों ने ये भी यह मुद्दा उठाया कि छात्र तकनीकी योग्यता में पिछड़ रहे हैं। वे मानते है कि छात्र नौकरी के दौरान सब सीख सकते है पर उनका कहना है कि यदि छात्र पहले से ही ज्ञानवान हो तो बेहतर रहता है। इस सत्र के दौरान प्लेसमेंट प्रक्रिया में भाग लेने वाले छात्रों को उन्होंने यह ही सलाह दी कि वे साक्षात्कार हेतु अच्छे से तैयारी करें। उनका कहना है कि छात्रों को व्यर्थ चिंता नहीं करनी चाहिए एवं धैर्य से काम लेना चाहिए। उन्होंने अनुरोध किया कि छात्र किसी भी कंपनी को हल्के मे न लें, क्या पता वही कंपनी उन्हें उनकी मनचाही नौकरी प्रदान कर दे। ई.आर.पी. संशोधन फॉर्म को लेकर बिट्सियन जनता के मन में उठ रहे विभिन्न सवालों के जवाब जानने के लिए हमने ई.आर.पी. टीम का प्रतिनिधित्व कर रहे साकेत भार्गव से मुलाक़ात की| उन्होंने बताया कि इसकी जरुरत एलिजिबिलिटी शीट से इतर कोर्स लेने के लिए जिसे “ओवरलोड” कहा जाता है के लिए होगी| इसका प्रोफोर्मा 15 जनवरी को ऑनलाइन उपलब्ध करवा दिया जाएगा| छात्रों को इसे भर कर 16 जनवरी को ए.आर.सी.डी. कार्यालय में जमा कराना होगा| इस प्रोफोर्मा में वे एक से अधिक कोर्स भी भर सकते हैं| छात्रों को ओवरलोड में विषय का चुनाव करते वक्त उनके “क्लैश-फ्री” होने और इस सेमेस्टर के लिए रजिस्टर किये सभी कोर्सेज़ की यूनिट्स का योग अधिकतम 25 तक होने जैसे बिंदुओं को ध्यान में रखना होगा|
जिन छात्रों ने ई.आर.पी. के दौरान ओवरलोड किया था, उन्हें वही कोर्स संशोधन फॉर्म में भी भरना होगा और उसके साथ ही उस कोर्स का ई.आर.पी. में भरा जाना भी स्पष्ट करना होगा| यदि ई.आर.पी. में भरे गए ओवरलोड की वजह से अन्य छात्रों को अपने पसंद के विषय नहीं मिल पा रहे होंगें तो उस स्थिति में उनका ओवरलोड कोर्स “डी-रजिस्टर” कर दिया जाएगा| जब सभी छात्रों के फॉर्म आ जाएँगे, तभी कोर्स आवंटन की प्रक्रिया शुरू की जाएगी| अतः कोर्सेज़ पी.आर. नंबर के अनुसार दिए जाएँगे न कि पहले फॉर्म जमा करवाने के आधार पर| कोर्स आवंटन की सूची 21 जनवरी को जारी की जाएगी| उसके बावजूद भी अगर कुछ विसंगतियाँ सामने आती हैं तो एक और संशोधन 24 जनवरी को किया जाएगा जिसका परिणाम 28 जनवरी तक घोषित किया जाएगा| साकेत ने भरोसा दिलाया है कि किसी भी छात्र का कोई नुकसान नहीं होने दिया जाएगा और पूर्ण पारदर्शिता के साथ यह कार्य किया जाएगा| http://arc/reg_guide/overload%20request%20form.pdf देश का भविष्य युवा में ही बसा है| किसी भी देश की तरक्की उसके युवा दल पर निर्भर करती है| इसके लिए यह आवश्यक है कि युवागण समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियाँ समझें| भारत में नौजवानों की आदर्श डॉ॰ किरण बेदी समाजसेवी के रूप में एक बहुत बड़ा उदाहरण है|
ओएसिस उद्घाटन समारोह के मुख्य अतिथि श्रीराम राघवन ने ओएसिस हिंदी प्रेस के साथ हुई वार्ता में अपने करियर सम्बन्धी व ओएसिस के आयोजन के बारे में बताया| ओएसिस के आयोजन में बिट्स के छात्रों द्वारा किए गए कार्य की उन्होंने काफी प्रशंसा की| उन्होंने कहा कि आयोजन में छात्रों द्वारा की गई मेहनत साफ़ झलक रही है| इतने बड़े आयोजन को देखते हुए लग रहा है कि आयोजक अपनी उम्र से काफी बड़ा काम करते नज़र आ रहे हैं| बिट्स का वातावरण भी काफी अच्छा है| यहाँ का हर काम छात्रों के द्वारा किया जाता है जो छात्रों के लिए उनकी जॉब में भी काफी सहायक होगा|
अपने करियर के बारे में वे बताते हैं कि प्रारंभ में उनकी मुलाकात मुकुल आनंद जी से हुई थी और उन्हें उनके साथ कार्य करने का मौका मिला| वहाँ कई महीनों तक उन्होंने बिना वेतन के कार्य किया| राघवन जी ने इसके बाद अपनी पहली डॉक्युमेंट्री रमन राघव का निर्देशन किया जो की 1960 के सीरियल किलर की कहानी पर आधारित है| इसके लिए उन्हें राम गोपाल वर्मा से काफी सराहना भी मिली| इसके बाद 2004 में उनकी पहली फिल्म “एक हसीना थी” आई जिसके निर्माता राम गोपाल वर्मा थे| परन्तु दर्शकों ने उसे ज्यादा पसंद नहीं किया| इसके बाद आई उनकी अगली फ़िल्म “जॉनी गद्दार” थी| उनका कहना है कि इस मूवी का प्रचार अच्छी तरह नहीं हो पाया था जिसके कारण एक अच्छी फिल्म दर्शकों तक नहीं पहुँच सकीं| उसके बाद “एजेंट विनोद” के भी अच्छे रिव्यूज़ नहीं मिले| परन्तु उनकी आने वाली फिल्म “बदलापुर” के बारे में वे कहते हैं यह फिल्म आम फिल्मों की तरह नहीं है| इसकी शैली बिल्कुल अलग है| हालाँकि इसमें कॉमेडी, ड्रामा आदि हैं परन्तु यह लोगों के लिए कम मनोरंजक होगी| बिट्सियंस के लिए उन्होंने कहा कि अपनी रुची एवं कला को अपने अंदर जिंदा रखिए और पढ़ाई के साथ उन्हें भी पर्याप्त समय देना चाहिए| मरु उद्यान, जिसे अंग्रेज़ी में ओएसिस कहते है, रेगिस्तान के उस भाग को कहा जाता है जहां शीतलता और ताज़गी का अनुभव होता है। इसी तर्ज पर बिट्स पिलानी के सांस्कृतिक महोत्सव का नाम भी ओएसिस रखा गया है। जैसे मरू उद्यान रेगिस्तान की गर्मी से त्रस्त जीव को शीतलता प्रदान करता है उसी प्रकार ओएसिस भी पढ़ाई के बोझ तले दबे हुए छात्रों को मनोरंजन का एक अवसर प्रदान करता है। यहाँ हर छात्र की रुचि के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। चाहे वह नृत्य हो या संगीत, नाटक हो या अंगविक्षेप, सभी तरह की कलाओं का प्रदर्शन होता है। 96 घंटों तक लगातार चलने वाले इस महोत्सव में समय कम पड़ सकता है पर कार्यक्रम कम नहीं हो सकते। भारतीय और पश्चिमी संस्कृतियों का ऐसा मेल है ओएसिस जिसमें भाग लेने के लिए छात्र देश के अलग-अलग भागों से आते हैं। बिट्स के छात्रों के पास इन छात्रों से बहुत अधिक कारण है इस संस्कृति के महाकुंभ शामिल होने के लिए। उनके अपने ही महाविद्यालय में इस महोत्सव का आयोजन हो रहा है|
इस वर्ष तो ओएसिस और भी ज़्यादा रोमांचक होने वाला है। इस वर्ष की थीम ही 90 के दशक पर आधारित है। छात्रों को इसके द्वारा अपने बचपन के उन खूबसूरत लम्हों को दोबारा से जीने का मौका मिलेगा। ओएसिस के कार्यक्रमों की लंबी सूची के प्रमुख नाम कुछ ऐसे हैं जिनका आयोजन होना ही अपने में बहुत बड़ी बात है। फिल्मों के सुप्रसिद्ध गायक बेनी दयाल ओएसिस में एक संगीत समारोह में प्रदर्शन करने वाले हैं। इसके योग में प्रसिद्ध संगीत कलाकार रघु दीक्षित भी अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे। साथ ही एशिया के सबसे बड़े इलेक्ट्रोनिक संगीत उत्सव-सनबर्न का आयोजन भी होने वाला है। अपनी विदुषी की कला के लिए देश भर में विख्यात ईस्ट इंडिया कॉमेडी से सौरभ पंत, साहिल शाह और सपन वर्मा जैसे विदूषक भी ओएसिस-2014 का भाग होंगे। यदि ये सब भी कम हो तो ओएसिस में इस वर्ष प्रॉम नाइट का आयोजन भी किया जा रहा है। युवाओं में यह कार्यक्रम काफी प्रसिद्ध होता है। इसके अलावा ओएसिस में नृत्य के बहुत से प्रकारों का ना केवल मुक़ाबला होने वाला है, अपितु जो छात्र नृत्य सीखने के इच्छुक है उनके लिए कार्यशालाओं का आयोजन भी होने वाला है। अंगविक्षेप के प्रसिद्ध कलाकार निरंजन गोस्वामी भी ओएसिस में मुकाबलों को जज करने एवं कार्यशालाओं का आयोजन करने के लिए बिट्स आने वाले है। फैश-पी के विषय में कोई कैसे भूल सकता है। इस वर्ष ओएसिस का सबसे अधिक चर्चित कार्यक्रम फ़ैशन परेड ही है। शैली और खूबसूरती का जब मिलन होगा, तो नज़ारा देखने योग्य ही होगा। इसके अतिरिक्त भी ना जाने कितने ही कार्यक्रम आयोजित किए जाने वाले हैं। इस वर्ष ओएसिस अपने साथ मौज, मस्ती और मनोरंजन का पूरा साज-सामान अपने साथ समेटे हुए ला रहा है। आपको केवल उसमे शरीक होना है। तो सोचना क्या है, घर की याद को भूल जाइए और ओएसिस का जमकर लुत्फ उठाइये। 29 अक्टूबर की शाम को जब विभिन्न क्लब और डिपार्टमेंट ओएसिस की तैयारियों को अंतिम रूप देने में व्यस्त थे तब सैक एम्फी में खेल सचिव अनिरुद्ध शर्मा की अध्यक्षता में बॉसम रिव्यू कमिटी का आयोजन किया गया| जैसा कि नाम से विदित है, इसका मुख्य उद्देश्य बॉसम के आयोजन के दौरान हुई विभिन्न छोटी-बड़ी गलतियों की समीक्षा कर अगले संस्करण में उनकी पुनरावृति रोकना एवं अच्छी योजनाओं को जारी रखने के लिए एक प्रक्रिया बनाना है| इस दौरान बॉसम से संबंधित सभी टीमों, क्लब्स और डिपार्टमेंट्स के प्रतिनिधियों के अतिरिक्त भारी मात्रा में जी.बी.एम. भी मौजूद थी| इस महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम की जानकारी बिट्सियन जनता तक पहुँचाने हेतु हिंदी प्रेस क्लब के सदस्य वहाँ मौजूद थे| प्रस्तुत है बॉसम रिव्यू कमिटी के प्रमुख अंश:-
कार्यक्रम की शुरुआत में डिपार्टमेंट ऑफ फोटोग्राफी के प्रतिनिधि ने बताया कि इस बार उन्होंने बॉसम में आउटस्टीज़ टीम के लिए टीम स्नैप की शुरुआत की थी| बॉसम में लगभग 9800 फोटो के जरिए 1,24,000 रुपये का योगदान देने पर उन्हें सभी उपस्थित लोगों ने सराहा| फिर एन.एस.एस. प्रतिनिधि ने बताया कि इस बार जुनून के लिए वे ई.एस.पी.एन. को प्रायोजक के रूप में लाने में सफल रहे| एक तरफ जहाँ उन्होंने रेक-एन-ऐक की सराहना की तो दूसरी ओर वे इन्वेंटरी व सभागार की स्थिति से नाखुश भी नज़र आए| इलास ने भी अपने इवेंट बॉसम क्विज़ को सफलतापूर्वक आयोजित बताया| इस पर खेल सचिव द्वारा प्रतिभागिता पूछने पर उन्होंने व्यंग्यात्मक रूप से कहा कि ‘इलास के इवेंट्स में प्रतिभागिता हमेशा कम ही रहता है|’ फिर डिपार्टमेंट ऑफ विजुअल मीडिया के प्रतिनिधि ने बताया कि उनके डिपार्टमेंट ने अप्रैल में ही इंट्रो वेबसाइट लॉन्च कर दी थी| इसके अतिरिक्त मुख्य वेबसाईट, यू-ट्यूब और फेसबुक पर वीडियो के साथ–साथ उन्होंने इस बार कोड पंजीकरण प्रणाली का भी उपयोग किया| सह खेल सचिव रिक्की ने उन्हें अधिक भार के कारण काम जल्दी शुरू करने का सुझाव दिया| हालांकि ताई-क्वान्डो टीम के कप्तान पुलकित मुख्य वेबसाइट पर खेलों की सूची में शुरुआती कुछ दिन तक ताई-क्वान्डो न होने पर डी.वी.एम. से असंतुष्ट थे| मैट्रिक्स ने मैच स्क्रीनिंग को उनके क्लब से संबंधित न बता कर अगले संस्करण में आयोजन से इन्कार किया| खेल सचिव अनिरुद्ध शर्मा ने फायरवॉल्ज़ द्वारा की गई सुरक्षा व्यवस्था की सराहना की और उन्हें बॉसम कंट्रोल्ज़ एवं पी.सी.आर. के साथ मिलकर नियम भंग करने पर दंड निर्धारण के दिशा-निर्देश तैयार करने को कहा| इन्फॉर्मल्ज़ की समन्वयक रिषिका ने उनके इवेंट क्विडिच में कम प्रतिभागिता के लिए 80 रुपये के पंजीकरण शुल्क को जिम्मेदार ठहराया| बॉसम हिंदी प्रेस के सह समंवयक प्रांजल उनके ऑनलाइन इवेंट बॉसम फैंटेसी लीग के लिए कंट्रोल्ज़ द्वारा पूर्व सहमति के बावजूद भी विभिन्न मुकाबलों के नतीजे समय पर उपलब्ध न करवाने से खासा असंतुष्ट दिखे| इस पर खेल सचिव ने कंट्रोल्ज़ को आगे से जिम्मेदारी निभाने को कहा और उन्होंने बॉसम हिंदी प्रेस के दूसरे इवेंट स्पॉटलाइट को एक अच्छी शुरुआत बताते हुए प्रांजल को अगले संस्करण में कमेंटरी से पहले संबंधित कप्तान से अनुमति लेने को भी कहा| खेल सचिव ने बिट्स फ़ायरफ़ॉक्स कम्युनिटी की बॉसम मैराथन और नवगठित माउन्टेनियरिंग एंड एडवेंचर क्लब की उनके इवेंट स्पार्टन-डैश के लिए प्रशंसा की| साथ ही उन्होंने एथलेटिक्स टीम को उनके मुकाबले मैराथन के दौरान करवाने पर फटकार भी लगाई| एथलेटिक्स टीम के प्रतिनिधि ने भी बॉसम कंट्रोल्ज़ द्वारा कांस्य पदक न देने के फैसले को एथलेटिक्स टीम का बताया जाने पर आपत्ति व्यक्त की| क्रिकेट टीम के कप्तान शालीन मनोचा ने बॉसम कंट्रोल्ज़ द्वारा उन्हें 24 खिलाड़ियों की टीम हेतु सिर्फ 12 प्रमाण पत्र और 14 पदक देने का विरोध किया| इस पर बॉसम कंट्रोल्ज़ के समन्वयक शुभम गुप्ता ने कहा कि आउटस्टीज़ टीम को 15 खिलाड़ियों की ही अनुमति होती है तो बिट्स टीम को भी 15 पदक ही मिलेंगे| इसके जवाब में शालीन ने बताया कि घरेलू टीम में सर्वदा अधिक खिलाड़ी होते हैं| और जब कंट्रोल्ज़ ने खिलाड़ियों की सूची माँगी थी तब उन्होंने 24 नाम दिए थे उस वक्त उनको कोई आपत्ति नहीं थी| इस बात का फुटबॉल कप्तान रिषभ और हॉकी कप्तान मिलिंद शाह ने भी समर्थन किया| इस पर खेल सचिव ने उत्तर दिया कि इस संस्करण से पदकों की संख्या को मानकीकृत किया गया है| इस पर सभी कप्तानों ने असंतोष जताते हुए कहा कि इस बदलाव के विषय में उन्हें पहले ही सूचित किया जाना चाहिए था| समन्वय और संवाद की कमी से हुए इस मतभेद का अगले संस्करण में दुहराव रोकने हेतु खेल सचिव ने बॉसम कंट्रोल्ज़ को पदक वितरण हेतु मानक दिशा-निर्देश बनाने को भी कहा| सह-खेल सचिव आरुषि गर्ग ने फुटबॉल टीम की जर्सी के साथ व्यक्तिगत उपयोग हेतु एक अतिरिक्त जर्सी भी मँगवाई थी| इस पर फुटबॉल कप्तान रिषभ खासा नाराज थे जिस पर आरुषि ने अपनी गलती स्वीकार कर क्षमा माँगी| अंत में इस बार हुई विभिन्न गलतियों को अगले संस्करण में सुधारने के निश्चय के साथ बॉसम रिव्यू कमिटी का समापन हुआ और अधिकतर लोग फिर से ओएसिस के काम में संलग्न हो गए| जहाँ एक ओर सभी विद्यार्थी अपने घरों या कैम्पस में दिवाली की खुशियाँ मना रहे थे, वहीं दूसरी ओर एक दुर्घटना ने एक घर का चिराग छीन लिया| हाल ही में 22 अक्टूबर को मनाली में हुई एक सड़क दुर्घटना में बिट्स परिवार के एक सदस्य की असमय मृत्यु हो गई तथा एक सदस्य गंभीर अवस्था में हमारी दुआओं के सहारे है|
मुख्य वार्डन श्री चम्पक बरन दस के अनुसार 20-22 विद्यार्थियों का एक दल मनाली भ्रमण पर गया था, जिसमें से दो विद्यार्थियों ने रोहतांग पास के भ्रमण के लिए एक मोटरसाइकिल किराये पर ली थी, जो कि चलते वक़्त सड़क पर फिसल गई| इस हादसे में रवि तेजा(2013A7PS147P) व रघु रेड्डी(2013A3PS315P) गंभीर रूप से घायल हो गये| दोनों को मनाली स्थित एक मिशनरी अस्पताल ले जाया गया, जहाँ रवि को मृत घोषित कर दिया गया| रघु को चंडीगढ़ पी.जी.आई. में स्थान्तरित कर दिया गया है जहाँ उनकी हालत अभी भी नाजुक बनी हुई है| उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया है, उनकी देखभाल के लिए उनके माता-पिता व परिजन चंडीगढ़ में हैं| वहीँ रवि की मृत देह उनके परिवारजन उनके गृहनगर विजयवाड़ा ले जा चुके हैं| कॉलेज प्रशासन की तरफ से श्री के.एन. दुग्गल जी एवं छात्र संघ अध्यक्ष साईं प्रणीत घायल छात्र के परिजनों से मिलने गए| बुद्ध भवन के अधीक्षक श्री सचदेव जी व ई.ई.ई. के प्रोफेसर श्री आनंद भी शोक जताने गये थे| मुख्य वार्डन सर के अनुसार सभी छात्रों ने आउटस्टेशन फॉर्म में गलत जानकारी दी थी कि वे दिवाली के अवसर पर घर जा रहें हैं| उनका मानना है कि छात्रों को और सतर्क रहना चाहिए था| पहाड़ी इलाकों में खुद बाइक न चलाकर एक चालक रख लेना चाहिए था| बहरहाल कॉलेज में एक शोकसभा का आयोजन किया गया था| श्री दास ने सभी को यही सलाह दी कि अगर विद्यार्थी किसी यात्रा पर जाएँ भी तो अपनी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखें व लापरवाही बिल्कुल न बरतें| संकट की इस घडी में हम सब ये ही प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर दोनों छात्रों के परिवारों को हिम्मत प्रदान करे| अभी हाल ही में 9 अक्टूबर को सुबह 8 बजे FD 3 में रसायनशास्त्र की प्रयोगशाला में लगी आग बिट्स के इतिहास में दुर्भाग्यपूर्ण घटना रही। इस घटना की विस्तृत जानकारी हिंदी प्रेस क्लब ने मुख्य वार्डन श्री चम्पक बरन दास से ली। आग लगने का मुख्य कारण पूछने पर उन्होंने बताया कि एक समिति का गठन किया गया है जो अभी कारणों का पता लगा रही है। उड़ती हुई अफवाहों को ख़ारिज करते हुए उन्होंने कहा कि किसी छात्र की गलती के कारण आग नहीं लगी है। असल तो उन दिनों मध्य-सत्रीय परीक्षा चल रही थी जिस कारण प्रयोगशाला में कोई छात्र था ही नहीं। आग कहाँ तक फैली, इमारत को आर्थिक एवं संरचनात्मक क्षति कितनी हुई एवं नवीकरण में कितना समय लगेगा आदि पर चर्चा भी गठित समिति ही कर रही है। सी.बी.डी. सर ने बताया कि समिति अभी कार्यरत है एवं उपरोक्त प्रश्नों के जवाब अभी उपलब्ध नहीं हैं।
आग का प्रभाव आसपास की अन्य प्रयोगशालाओं एवं कक्षों पर भी पड़ा है। आग जल्द ही फ़ैल गई थी एवं रसायनों का जहरीला धुँआ उठने लगा था। तुरंत ही स्थानीय प्रशासन को बुलाया गया। आग जटिल थी एवं विशेषज्ञों की आवश्यकता भी थी। CEERI से भी एक दल रवाना हुआ जिसने प्रशंसनीय सहायता प्रदान की। बिट्स के रसायनशास्त्री भी एकत्रित हुए एवं घटनाक्रम का जायज़ा लिया। अग्नि रोकथाम के प्रयास चलते रहे जो अगले दिन तक चले। 10 अक्तूबर की सुबह तक आग पर काबू पाया जा सका। गौरतलब है कि कोई भी चोटिल नहीं हुआ एवं इमारत समय पर ही खाली कर ली गई थी। श्री चम्पक बरन ने बताया कि दिल्ली से संरचना विशेषज्ञ भी बुलाए गए हैं जो पुनर्निर्माण का कार्य संभाल रहे हैं। अंदाजे के अनुसार तो ओएसिस के बाद प्रयोगशाला सुचारु रूप से चालित हो जाएँगी। चूँकि इस तरह की घटना पहली बार हुई है, संस्थान के लिए यह एक सबक के समान है। संस्थान से जुड़े सभी व्यक्तियों से सुझाव भी लिए जा रहे हैं ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं को रोका जा सके। इस तरह की अचानक आई समस्या का निवारण कठिन होता है परन्तु सावधानी बरतने से ऐसी दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है| बिट्स पिलानी में 16 से 21 अक्तूबर के अंतराल में दान उत्सव मनाया गया। यह उत्सव बिट्स के छात्रों द्वारा चलित गैर-सरकारी संस्थान “निर्माण” ने आयोजित किया था। इस उत्सव के दौरान बिट्स पिलानी कैम्पस के लोगों तथा आसपास के क्षेत्र जैसे बास, नट्बस्ती एवं हरीनगर के लोगों के लिए विभिन्न प्रकार के आयोजन किए गए थे।
इस उत्सव का आरंभ उद्घाटन समारोह से हुआ। मुख्य अतिथि के तौर पर बिट्स के वाइस चान्सलर श्री बी.एन. जैन तथा उनकी पत्नी श्रीमति मधु जैन उपस्थित हुए थे। “मंज़िल मिस्टिक्स” नामक गायक मंडली ने शानदार संगीत कार्यक्रम से महफिल जमाई थी। इस उत्सव के मुख्य आकर्षण थे “विश ट्री”, “डे ऑफ जॉय” और “हौर ऑफ जॉय”। “हौर ऑफ जॉय” के अंतर्गत बिट्स के छात्रों एवं अध्यापकों को निर्माण के विभिन्न प्रोजेक्ट्स में आमंत्रित किया गया। “डे ऑफ जॉय” में अमला बिरला केंद्र के बच्चों के लिए एक मनोरंजक कार्यक्रम आयोजित किया गया था। बिट्स के 1985 बैच के छात्रों का पुनर्मिलन समारोह भी इसी दौरान होने के कारण इस समारोह में बिट्स के पुराने छात्रों ने भी भाग लिया। एक अल्युमनाई ने कहा “मुझे निर्माण की कहानी के विषय में जानकार बहुत गर्व हुआ। निर्माण में काम करने वाले छात्रों की लगन सराहनीय है। ऐसी सामाजिक ज़िम्मेदारी भारत के छात्रों में जगानी चाहिए।“ निर्माण 2005 में बिट्स के छात्रों द्वारा शुरू किया हुआ एक गैर सरकारी संगठन है जो कि पिलानी के आसपास के क्षेत्रों में विकास के लिए कार्यरत है। शिक्षा, रोज़गार, सामाजिक विकास तथा तकनीकी शिक्षा जैसे क्षेत्रों मे निर्माण की योजनाएँ केन्द्रित हैं। इसके साथ-साथ दान उत्सव जैसे समारोह के द्वारा कॉलेज के छात्रों मे सामाजिक ज़िम्मेदारी की भावना जगाते हैं। निर्माण के स्वयंसेवक के सहयोग से “जॉय ऑफ गिविंग वीक” सफल रहा। |
हिंदी प्रेस क्लबArchives
August 2015
Categories |