29 जनवरी 2015 की तारीख ने बिट्स के इतिहास में हमेशा- हमेशा के लिए अपनी जगह कायम कर ली। इसका श्रेय जाता है, नोबल शान्ति पुरस्कार 2014 से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी जी को जिन्होंने अपने आगमन से हमें नवाजा। 11 बजकर 20 मिनट पर पूरा सभागार तालियों से गूँज उठा जब कैलाश सत्यार्थी जी हमारे बीच पधारे। रागमलिका की ओर से प्रस्तुत सरस्वती एवं गणेश वंदना के साथ समारोह आरम्भ हुआ। परन्तु सभागार में बैठे बिट्सियन्स एवं स्कूली बच्चों को इंतज़ार था तो बस श्री कैलाश सत्यार्थी जी का। वही कैलाश सत्यार्थी जिन्होंने आज से लगभग 35 वर्ष पूर्व सन 1980 में बचपन बचाओ आंदोलन की नींव रखी थी और जो आज दुनिया भर में पीड़ित एवं शोषित बच्चों के लिए मसीहा हैं। देश-विदेश के अनगिनत पुरस्कारों से सम्मानित श्री कैलाश सत्यार्थी जी के चेहरे का तेज देखते ही बनता है। तत्पश्चात प्रोफ़ेसर बिजेंद्र नाथ जैन ने श्री कैलाश सत्यार्थी के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किए एवं उनको शॉल पहनाकर सम्मानित किया। जैसे ही कैलाश सत्यार्थी जी मंच पर आए, एक बार फिर सभागार में सभी उनके सम्मान में खड़े हो गए एवं तालियों से उनका स्वागत किया। सत्यार्थी जी ने कहा कि पिछले 3 महीनों में उन्हें लगभग 11,500 निमंत्रण आए, जिनमें कई अन्य इन्जीनियरिंग संस्थान भी थे। सर्वप्रथम वे विदिषा स्थित अपने कॉलेज गए एवं बिट्स पिलानी को अपने दौरे के लिए उन्होंने दूसरे कॉलेज के रूप में चुना। कॉलेज का माहौल देख उन्होंने भी अपने कॉलेज के दिनों के कुछ किस्से हमारे साथ बाँटे। उन्होंने बताया कि कैसे कॉलेज में पढ़ने वाली इकलौती लड़की के साइकिल के पीछे 30 अन्य छात्रों की साइकिलें हुआ करती थीं। इसके पश्चात उनकी बातों ने बाल मजदूरी का रुख किया, उन्होंने हम सभी को इस बात से अवगत कराया कि कैसे लाखों बच्चे आज भी इस सामाजिक दानव का शिकार हैं। कहीं उन्होंने छोटे-छोटे बच्चों को मजदूरी करते देखा तो कहीं उन्हीं बच्चों के हाथों में बंदूकें देखी हैं। किशोर लड़कियों के साथ जानवरों जैसा सलूक, उनके साथ दुष्कर्म व यौन उत्पीड़न जैसी वारदातें कई देशों में चल रही हैं। आखिर इसमें उनका क्या दोष है? क्या उन्हें सपने देखने का अधिकार नहीं है? ऐसे कई सवाल हैं जिन्हें वे दुनिया के सामने लाने के लिए अथक मेहनत कर रहे हैं। उन्होंने अपनी चिंता ना करते हुए, ना जाने कितने ही जख्मों को सहते हुए पिछले तीन दशकों में 140 देशों में हज़ारों बच्चों को उनका बचपन लौटाने की मुहिम छेड़ी है। पेशावर में विद्यालय पर आतंकवादियों ने हमला कर बेक़सूर बच्चों को अपना शिकार बनाया, आज इस समय जब आप यह पत्रिका पढ़ रहे हैं इसी क्षण ना जाने कितने ही बच्चों का व्यापार इराक व यमन जैसे देशों में हो रहा है, आज भी कोई नहीं जानता की नाइजिरिया में बोको हराम ने जिन लड़कियों को बंधक बनाया था उनमें से 200 बच्चियाँ किस हाल में हैं। इन बच्चों की आवाज़ बनकर श्री सत्यार्थी जी ने एक उम्मीद जगाई है, और हिन्दी प्रेस परिवार आशा करता है कि इस उम्मीद और उनकी सोच को हम बिट्सियन्स भी अपनाएंगे। श्री कैलाश सत्यार्थी जी ने पुरस्कार में जीती हुई धन राशि को भी इन्हीं बच्चों के खोए हुए बचपन के अधीन करने का फैसला लिया है। उन्होंने अपने इस पुरस्कार को अपनी धरती एवं अपने सभी देशवासियों को समर्पित करते हुए अपने पदक (मेडल) को भी राष्ट्रपति जी को सौंप दिया। उन्होंने देश के सभी युवाओं को 3-D के फॉर्मूला को अपनाने की नसीहत दी... ड्रीम, डिस्कवर और डू। उन्होंने अपने स्कूल के पहले दिन की कहानी हमें सुनायी, कि उनके स्कूल के दरवाजे के सामने एक मोची का बच्चा काम कर रहा था। पाँच साल की उम्र में ही जब उन्होंने उस बच्चे की दुर्दशा देखी तो उनसे रहा नहीं गया और उन्होंने अपने अध्यापकों से पूछा कि वो लड़का हमारे साथ क्यों नहीं पढ़ सकता? उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला, यह बात उनके दिल में घर कर गयी कि ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब उनके अध्यापकों के पास भी नहीं था। विद्युत अभियांत्रिकी (इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग) की डिग्री पाने के बाद वे ऐसे हर सवाल के जवाब को पाने के सफर पर निकल पड़े और 140 से भी अधिक देशों में बच्चों के बीच खुशियाँ बाँटकर हमारे बीच खड़े थे। उन्होंने अपने इस सफलता का श्रेय अपने साथ काम करने वाले हर कर्मचारी को दिया एवं अपनी जीवन-संगिनी को भी धन्यवाद कहा। इस सफर में अपने दो साथियों को खोने का दुःख भी उन्होंने ज़ाहिर किया। उन्होंने आगे बताया कि कैसे आज भी 17.5 करोड़ बच्चे बाल श्रम का शिकार हैं तथा दूसरी ओर 20 करोड़ लोगों के पास नौकरी नहीं है। अगर सब साथ मिलकर मसले का हल निकालना चाहें तो बाल श्रम का पूरी तरह से सफाया भी मुमकिन है। उदाहरण स्वरूप उन्होंने दक्षिणी एशिया के कालीन कारोबार के बारे में बताया कि 15 वर्ष पहले यहाँ 10 लाख बच्चे बाल श्रम से ग्रसित थे वहीं आज केवल 2 लाख बच्चे इस कारोबार का हिस्सा हैं। अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है लेकिन उम्मीद की किरण अब पहले से अधिक तेज है। हम भी उम्मीद करते हैं कि जिस प्रण के साथ श्री कैलाश सत्यार्थी जी अपने इस सफर पर चले थे उसे वे ज़रूर पूरा कर सकें एवं उनके इस सपने को साकार करने में हम अपनी भूमिका ज़रूर निभाएंगे तथा अपने स्तर पर बाल श्रम के खिलाफ जितना हो सकेगा उतना काम करेंगे। हमें गर्व है कि महात्मा गाँधी की भूमि में आज भी उनकी विचारधारा वाले लोग हमारा मार्गदर्शन करने के लिए मौजूद हैं।
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August 2015
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