उदासीनता का 'वर्ल्ड रिकॉर्ड'
- दीपेश शर्मा
दरवाज़े पर खटखटाने की आवाज़ से मैं नींद से जाग गया। अभी 6 बजे ही तो किसी तरह सोने की कोशिश की थी मैंने, पर लोगों को चैन कहाँ है? मैंने आवाज़ लगाकर उन्हें भगाने का प्रयास किया, पर शायद यह कोई 'विंगी' नहीं था। मन मसोसकर मैं किसी तरह दरवाज़े तक गया। 2 शख्स दरवाज़े पर लैपटॉप लिए खड़े थे। उनसे बात करने पर पता चला कि वे लोग किसी 'वर्ल्ड रिकॉर्ड सोसाइटी' से थे। कल तक जिस सोसाइटी का नाम तक नहीं सुना था, आज वह 'वर्ल्ड रिकॉर्ड' बनाने की बात कर रही है। 'वर्ल्ड रिकॉर्ड' था भी अजब, एक साथ सर्वाधिक संख्या में 'रूबिक्स क्यूब' को हल करने का। 'रूबिक्स क्यूब' का नाम तो बहुत सुना था, पर हमेशा ही, रंगों को एक साथ लाने की जद्दोजहत से दिमाग को दूर ही रखा। खैर वे लोग तो उसे हल करना सिखाने को भी तैयार थे, परंतु सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न था, इतनी मेहनत करेगा कौन? वे दोनों कुछ रिकॉर्ड के बारे में बताने लगे, तो मैंने बिना कुछ ज़्यादा ना-नुकुर किए, अपना नाम लिखवा दिया। वैसे भी केवल, नाम ही तो लिखवाया था, कौन-से शपथ-पत्र पर अपने दस्तख़त दे दिये थे। मैंने तुरंत दरवाज़ा बंद किया, और फिर उबासी लेते हुए अपने पलंग पर जा गिरा।
यह सब होने को शायद हफ्ता भर-सा बीता था कि कुछ दिनों में 'मेल' पर भी कुछ रिकॉर्ड के बारे में आना शुरू हुआ। मैंने सोचा शायद यह एक-ही बार आने वाले असंख्य 'मेलों' की कड़ी का एक हिस्सा था, पर अगले ही दिन मैं गलत साबित हो गया। अब तो इस रिकॉर्ड के बारे में, विंग में भी चर्चा होने लगी थी। कुछ दिनों बाद तो हर कमरे पर इस 'सोसाइटी' के सदस्य पहुँचकर पंजीकरण कराने लगे थे। जब मैंने उनके लक्ष्य के बारे में पूछा तो वे करीब 4000 की संख्या को पार करने का मन बनाए हुए थे। अंदर ही अंदर यह सोचकर मेरी हंसी छूट पड़ी, क्योंकि शायद कुछ ही दिनों पहले उनकी संख्या कहीं 400-500 पर अटकी पड़ी थी। मैंने इसके बारे में विंग में बताया, तो कई लोगों को मेरी ही तरह काफी हंसी आई, व कई लोग उस कथन को सत्य सिद्ध करने की वकालत में लग गए।
कुछ ही दिनों में 'एक' और मेल आया, जहां संख्या के 4000 पहुँचने का ज़िक्र था। मैं भौंचक्का रह गया, क्योंकि अब जा कर के मुझे कहीं इस कार्यक्रम की गंभीरता का अंदाज़ा होने लगा था। उसी शाम मेरे कमरे पर कुछ लोग क्यूब देने पहुँच गए। मैंने अनमने मन से वह ले तो लिया, परंतु उसे सीखने और हल करने का 'समय' मेरे पास नहीं था। इसलिए मैं क्यूब कोने में पटक, लैपटॉप पर 'फ़्रेंड्स' देखने लग गया।
हर बीतते दिन के साथ फेसबुक से लेकर वॉट्सएप्प पर क्यूब सिखाने की कार्यशालाओं, के संदेशों की जैसे बाढ़-सी आ गई थी। मैंने तो इन सोसाइटी वालों को ब्लॉक करने का भी विचार किया, पर अगले ही श्रण कोई ना कोई पोस्टर दिख जाता, सो मैंने लाइलाज बीमारी समझकर इसे टालना चाहा। यहाँ तक की बाथरूम जैसी जगहों में भी कहीं न कहीं एक अदना-सा पोस्टर देखने को मिल जाता था। अब मैंने भी विचार किया कि बहती गंगा में हाथ धोने में ही समझदारी है। इसलिए किताबों के ढेर के नीचे पड़े उस क्यूब को निकालकर, मैंने अपने विंगी को बुलाकर सीखना शुरू किया। खैर 2 'लेयर' सीखने के बाद मुझे आगे प्रयास करने का कोई विशेष कारण नहीं सूझा, सो 'फ्रेंड्स' के उस छूटे हुए एपिसोड पर मैंने काम करना शुरू कर दिया।
आखिर 16 अप्रैल भी आ ही गयी। दिनभर सोसाइटी वाले अपने-अपने तरीकों से सभी को बुलाने में लगे रहे। यहाँ तक की मैस में भी पास बैठा व्यक्ति मुझसे जाने की अपील करने लगा। दोपहर होते होते मुझे नींद लग गयी। जब आँख खुली तो 4 बजने ही वाले थे। मैं आयोजन में जाने को लेकर गहरे असमंजस में था। आज तो 'कॉम्प्री' की तैयारी के बहाने ही मैं इस योजना को टाल देना चाहता था, परंतु कुछ 'घोट' कहलाने वाले लोगों को हाथ में क्यूब लिए बाहर जाते देख मैं हैरान रह गया। फिर मैंने आस-पास विंग में देखा तो कुछ लोग काफी उत्साहित होकर बाहर खड़ी बसों में जाने लगे थे, वहीं कुछ लोग विंग में CS खेलने में लगे थे। भरी धूप में इतनी दूर केवल एक खिलौना घुमाने फिराने से ज़्यादा रोचक, मुझे उन 'कूल' लोगों के साथ CS खेलने का विचार लगा। भीतर ही मैंने सोचा कि विश्व रिकॉर्ड कोई ऐसे ही टूट जाता है भला? मैं तुरंत ही लैपटॉप निकाल खेलने में व्यस्त हो गया। शाम होते होते कुछ दोस्तों की 'टाइमलाइन' पर क्यूब के संग तस्वीरें देखकर मुझे न जाने का खेद-सा होने लगा था, परंतु तुरंत ही संदेश आया कि रिकॉर्ड नहीं टूट पाया है, चूंकि बिट्स के छात्र पर्याप्त संख्या में नहीं थे। हम सभी गेम 'पौज़' कर, ठहाके मार कर कर हंसने लगे, और कहने लगे कि बढ़िया ही हुआ हम नहीं गए, वैसे भी हम 5-6 लोगों के जाने से कौन सा वर्ल्ड रिकॉर्ड ही टूट जाता। साथ ही मुझे उन स्कूल के छात्रों पर भी एक दफ़ा हंसी आ गई जो इतने दिनों से इस 'काल्पनिक' रिकॉर्ड को सच बनाने में लगे हुए थे। अपने कमरे पर पहुँचकर मुझे उन लोगों पर हंसी आने लगी जो ऐसे आयोजन में अपना धन और समय नष्ट करने में लगे हुए थे। एक बार के लिए वह 10-15 दिन के सारे जतन, मुझे एक चुट्कुले-से प्रतीत होने लगे। शुक्र है मेरा समय इसमे बर्बाद नहीं हुआ। कमरे में अब भी वह क्यूब रखा हुआ था। मैंने उसे ट्रंक में कहीं एक ओर फेंक दिया, और जल्द ही लैपटॉप निकाल सीरीज़ के अगले सीज़न को डाउनलोड करने में लग गया।