जी.एस.टी.- माल और सेवा कर
-अक्षिता शर्मा
गुड्स एंड सर्विस टेक्स(जी.एस.टी.) पूरे भारत में लागू एक अप्रत्यक्ष कर है, जो केन्द्रीय और राज्य सरकारों द्वारा लगाए जाने वाले कई करों के स्थान पर प्रावधान में लाया गया है। यह जी.एस.टी. परिषद के द्वारा शासित है और इसके अध्यक्ष केन्द्रीय वित्त मंत्री हैं। भारत जी.एस.टी. लागू करने वाला विश्व का 161वाँ देश है। जी.एस.टी. के तहत माल और सेवाओं पर 0%, 5%, 12%, 18%, 28% की दरों से कर लगाया जाएगा।
जी.एस.टी. केंद्र सरकारों की गत 17 वर्षों की मेहनत का परिणाम है। यह अत्यंत सरल कार्य प्रणाली को अपनाकर बनाया गया है। अब एक वस्तु पर विभिन्न प्रकार के कर नहीं होंगे। केवल एस.जी.एस.टी. और सी.जी.एस.टी. वह भी सीधा उत्पादक से उपभोक्ता तक होगा। अर्थात् यदि किसी वस्तु को उत्पादन के बाद चार व्यापारियों से होकर गुज़रना होगा तो हर बार जितना मूल्य बढ़ेगा, उस हिसाब से ही कर बढ़ेगा। इस कराधान प्रणाली से सरकारी खजाने की चोरी की संभावना भी खत्म हो गई है और देश के विराट अर्थशास्त्र एवं व्यापार का एकीकरण भी हुआ है।
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 30 जून 2017 की अर्द्धरात्रि को जी.एस.टी. विधेयक पारित किया गया। इसे स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े आर्थिक सुधार के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि विपक्ष के कुछ सदस्यों ने जी.एस.टी. विधेयक का विरोध किया, और दावा किया कि सरकार केवल मौजूदा कराधान प्रणाली को फिर से रिब्रांड करने की कोशिश कर रही है। परंतु यह जानना दिलचस्प है कि जिस भाजपा ने यू.पी.ए. शासन के दौरान जी.एस.टी. का विरोध किया था, उसी एन.डी.ए. सरकार ने जी.एस.टी. विधेयक पारित कैसे करवाया? यह एक तथ्य है कि कई भाजपा शासित प्रदेशों ने जी.एस.टी. का विरोध किया था। परंतु सिर्फ भाजपा शासित प्रदेशों ने विरोध किया था, यह बात गलत है। केरल के वित्त मंत्री ने जी.एस.टी. के तहत कई अवधारणाओं पर सवाल उठाए थे, जिन पर किसी की सहमति नहीं थी और न ही स्पष्टता थी। अक्टूबर 2013 में, द हिंदू की एक रिपोर्ट में यह बताया गया था कि 3 गैर-भाजपा राज्यों ने जी.एस.टी. विधेयक का विरोध किया था।
जी.एस.टी. राज्य के स्तर पर अप्रत्यक्ष करों को मिटाता है, इस प्रकार राज्यों के लिए राजस्व का एक प्रमुख स्रोत बाहर ले जाता है। मोदी सरकार ने 10 माह से कम समय में आम सहमति कैसे हासिल कर ली, जब यू.पी.ए. सरकार ऐसा 10 वर्षों में भी नहीं कर सकी? वे राज्यों की माँगों पर सहमत हुए। राज्यों की 4 माँगों में से 3 को स्वीकार कर लिया गया, और एक बोनस लाभ राज्यों को दिया गया।
जी.एस.टी. से हमारे, मतलब विद्यार्थियों के जीवन पर कैसे प्रभाव पड़ेगा?
“आजकल कुछ दिनों से चल रहे हँगामे को देखकर मुझे फ़ीस बढ़ने के कारण जान पड़ रहे हैं।
लगता है जी.एस.टी. के बारे में संस्था को बहुत पहले से बता दिया गया था।”
जी.एस.टी. से शिक्षा पर लगने वाला कर 3.5 प्रतिशत बढ़ गया है लेकिन शिक्षा से जुड़ी वस्तुएँ जैसे स्टेशनरी आदि काफी सस्ते हो जाएँगे। सभी प्रकार के कनफेक्शनरी आइटम्स में मूल-चूल गिरावट है। इस कर प्रणाली से साइबर सेक्योरिटी एक बड़ी चुनौती के रूप में उभर कर आएगी। हमारे लिए इस क्षेत्र में शोध की अच्छी संभावनाएँ होंगी। हमें शायद बाहर खाना कम करना पड़ेगा, और मैस के खाने को चखना शुरू करना पड़ेगा। पर डोमिनोज़, शायद अभी भी फ्री डेलीवेरी दे, और शायद हमें डोमिनोज़ पीज्ज़ा और ज्यादा सस्ता पड़े। जाली कागजातों द्वारा एम.सी.एन. छात्रवृति पाने वालों की भी मुश्किलें बढ़ने की भी पूरी संभावाना है।
इन सब बातों का सारांश यह निकलता है कि शायद जी.एस.टी. की वजह से देश विकास की ओर एक कदम और बढ़ें, जिसमें हम सब का योगदान होगा। लेकिन मोदी जी के अनुसार गत कराधान प्रणाली को समझ पाना महान वैज्ञानिक आइंस्टाइन के लिए भी कठिन था, कहीं जी.एस.टी. विधेयक के पीछे यह भी तो एक कारण नहीं था?
जी.एस.टी. केंद्र सरकारों की गत 17 वर्षों की मेहनत का परिणाम है। यह अत्यंत सरल कार्य प्रणाली को अपनाकर बनाया गया है। अब एक वस्तु पर विभिन्न प्रकार के कर नहीं होंगे। केवल एस.जी.एस.टी. और सी.जी.एस.टी. वह भी सीधा उत्पादक से उपभोक्ता तक होगा। अर्थात् यदि किसी वस्तु को उत्पादन के बाद चार व्यापारियों से होकर गुज़रना होगा तो हर बार जितना मूल्य बढ़ेगा, उस हिसाब से ही कर बढ़ेगा। इस कराधान प्रणाली से सरकारी खजाने की चोरी की संभावना भी खत्म हो गई है और देश के विराट अर्थशास्त्र एवं व्यापार का एकीकरण भी हुआ है।
भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 30 जून 2017 की अर्द्धरात्रि को जी.एस.टी. विधेयक पारित किया गया। इसे स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े आर्थिक सुधार के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि विपक्ष के कुछ सदस्यों ने जी.एस.टी. विधेयक का विरोध किया, और दावा किया कि सरकार केवल मौजूदा कराधान प्रणाली को फिर से रिब्रांड करने की कोशिश कर रही है। परंतु यह जानना दिलचस्प है कि जिस भाजपा ने यू.पी.ए. शासन के दौरान जी.एस.टी. का विरोध किया था, उसी एन.डी.ए. सरकार ने जी.एस.टी. विधेयक पारित कैसे करवाया? यह एक तथ्य है कि कई भाजपा शासित प्रदेशों ने जी.एस.टी. का विरोध किया था। परंतु सिर्फ भाजपा शासित प्रदेशों ने विरोध किया था, यह बात गलत है। केरल के वित्त मंत्री ने जी.एस.टी. के तहत कई अवधारणाओं पर सवाल उठाए थे, जिन पर किसी की सहमति नहीं थी और न ही स्पष्टता थी। अक्टूबर 2013 में, द हिंदू की एक रिपोर्ट में यह बताया गया था कि 3 गैर-भाजपा राज्यों ने जी.एस.टी. विधेयक का विरोध किया था।
जी.एस.टी. राज्य के स्तर पर अप्रत्यक्ष करों को मिटाता है, इस प्रकार राज्यों के लिए राजस्व का एक प्रमुख स्रोत बाहर ले जाता है। मोदी सरकार ने 10 माह से कम समय में आम सहमति कैसे हासिल कर ली, जब यू.पी.ए. सरकार ऐसा 10 वर्षों में भी नहीं कर सकी? वे राज्यों की माँगों पर सहमत हुए। राज्यों की 4 माँगों में से 3 को स्वीकार कर लिया गया, और एक बोनस लाभ राज्यों को दिया गया।
जी.एस.टी. से हमारे, मतलब विद्यार्थियों के जीवन पर कैसे प्रभाव पड़ेगा?
“आजकल कुछ दिनों से चल रहे हँगामे को देखकर मुझे फ़ीस बढ़ने के कारण जान पड़ रहे हैं।
लगता है जी.एस.टी. के बारे में संस्था को बहुत पहले से बता दिया गया था।”
जी.एस.टी. से शिक्षा पर लगने वाला कर 3.5 प्रतिशत बढ़ गया है लेकिन शिक्षा से जुड़ी वस्तुएँ जैसे स्टेशनरी आदि काफी सस्ते हो जाएँगे। सभी प्रकार के कनफेक्शनरी आइटम्स में मूल-चूल गिरावट है। इस कर प्रणाली से साइबर सेक्योरिटी एक बड़ी चुनौती के रूप में उभर कर आएगी। हमारे लिए इस क्षेत्र में शोध की अच्छी संभावनाएँ होंगी। हमें शायद बाहर खाना कम करना पड़ेगा, और मैस के खाने को चखना शुरू करना पड़ेगा। पर डोमिनोज़, शायद अभी भी फ्री डेलीवेरी दे, और शायद हमें डोमिनोज़ पीज्ज़ा और ज्यादा सस्ता पड़े। जाली कागजातों द्वारा एम.सी.एन. छात्रवृति पाने वालों की भी मुश्किलें बढ़ने की भी पूरी संभावाना है।
इन सब बातों का सारांश यह निकलता है कि शायद जी.एस.टी. की वजह से देश विकास की ओर एक कदम और बढ़ें, जिसमें हम सब का योगदान होगा। लेकिन मोदी जी के अनुसार गत कराधान प्रणाली को समझ पाना महान वैज्ञानिक आइंस्टाइन के लिए भी कठिन था, कहीं जी.एस.टी. विधेयक के पीछे यह भी तो एक कारण नहीं था?