भारतीय राजनीति में छात्र राजनीति का एक बहुत बड़ा योगदान रहा है। वर्तमान में भारतीय राजनीति में कई बड़े चेहरे हैं जिनके राजनैतिक जीवन की शुरुआत छात्र राजनीति से हुई। अगर इसके इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो हम देखेंगे कि जब-जब छात्रों ने संगठित होकर किसी आंदोलन की कमान संभाली है, तब-तब विरोधियों ने उनके समक्ष घुटने टेके हैं। इसका सबसे बड़ा साक्ष्य जेपी आंदोलन जिसने 80 के दशक में पहले बिहार की व बाद में सम्पूर्ण भारत की राजनीति में जो परिवर्तन लाया था, उसके परिणाम आज हमारे सामने हैं। परंतु आज के छात्र राजनीति के हालात देखकर इतिहास दोहरने वाली क्षमता नहीं दिखाई देती है। सभी छात्र संगठन वरिष्ठ राजनैतिक दलों की युवा इकाई के रूप में कार्य कर रहे हैं। और इनका मुख्य उद्देश्य भी सिर्फ चुनावों में विजय प्राप्त करना है, चाहे उसके लिए किसी भी प्रकार के अनैतिक कार्य को अंजाम देना हो।
इसके विपरीत बिट्स की छात्रसंघ राजनीति ने सम्पूर्ण भारत की छात्र राजनीति के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। यहाँ की छात्र राजनीति की सबसे खास बात है यहाँ की चुनाव प्रक्रिया। और इसको और खास बनाता है यहाँ का चुनाव आयोग, जिसके सदस्य यहाँ के ही छात्र होते हैं। प्रचार अभियान से लेकर चुनाव परिणाम तक अनुशासन व पारदर्शिता के साथ चुनाव सम्पन्न करवाना, इसका पूरा श्रेय यहाँ के चुनाव आयोग को जाता है। आयोग द्वारा प्रचार अभियान के दौरान किसी भी प्रकार के अनैतिक कार्य को रोकने के लिए सख्त नियम बनाए गए हैं। जिसमें किस तरीके से प्रचार करना, इसकी समय सीमा इत्यादि। और अगर कोई प्रत्याशी इस आचार संहिता का उल्लंघन करता है तो उसके लिए इसमे सजा के भी कड़े प्रावधान हैं। जिसमे चुनाव प्रचार पर पाबंदी से लेकर पर्चा निरस्त करने तक के नियम है।
किन-किन का होता है चुनाव?-
सम्पूर्ण छात्रसंघ का प्रतिनिधित्व करने वाले अध्यक्ष व महासचिव का चुनाव होता है। इसके अलावा प्रति हॉस्टल से एक हॉस्टल प्रतिनिधि का भी चुनाव होता है जो संयुक्त छात्र समिति में अपने-अपने हॉस्टल का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रति हॉस्टल में एक कल्चरल सेक्रेटरी व स्पोर्ट्स सेक्रेटरी का भी चुनाव होता है जो की क्रमशः अपने हॉस्टल में सांस्कृतिक व खेल संबंधी गतिविधियों का दायित्व संभालते हैं। प्रति मेस के एक मेस प्रतिनिधि का भी चुनाव होता है, जिनके ऊपर मेस संबन्धित कार्यों का दायित्व होता है। चुनाव किसी का भी हो परंतु मुद्दा सभी का एक ही होता है- छात्र हितों की रक्षा व छात्रों की सुवधाओं में निरंतर सुधार। और इसे अमली जामा पहनाने के लिए हर प्रत्याशि घोषणा पत्र के तहत चुनाव में हिस्सा लेता है। घोषणा पत्र के हर बिन्दु को अमल में लाने के लिए संसाधन कैसे जुटाए जाएंगे, किस तरह उन पर कार्य होगा, इस सबके लिए चुनाव आयोग द्वारा सामूहिक चर्चा भी होती है जिसमे संस्था के आम छात्र भी हिस्सा लेते हैं। इन सब के कारण एक राष्ट्रीय अखबार ‘राजस्थान पत्रिका’ ने 25 अगस्त 2014 के प्रकाशित अंक में बिट्स के चुनाव पर एक लेख लिखा जिसमे यहाँ की चुनाव प्रक्रिया की तुलना अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव की चुनाव प्रक्रिया से की थी।
प्रथम वर्षीय छात्रों का पहला कॉलेज चुनाव-
संस्थान के नए-नवेले छात्रों के लिए यह चुनाव खास भी होगा और परेशान करने वाला भी। खास इसलिए कि सभी के लिए यह कॉलेज में आने के पहला चुनाव होगा व इसलिए भी क्योंकि कुछ के लिए यह पहली बार मतदान करने का मौका भी होगा। इसे लेकर छात्र काफी रोमांचित होंगे। परंतु यह चुनाव कुछ समय के बाद उनके लिए परेशानी का सबब भी बन जाएगा। इसका कारण यह है कि प्रत्याशियों द्वारा प्रथम वर्षीय छात्रों को सर्वाधिक टार्गेट किया जाता है। इसका मुख्य कारण है कि प्रत्याशी के इतिहास के बारे में आपको जानकारी नहीं होती है। इसलिए आपको लुभाने के लिए प्रचारक डोर टू डोर प्रचार करते हैं। जिससे प्रचारक छात्रों के कमरे पर आकर घंटों प्रत्याशी के पूर्व में किए गए कार्यों का विवरण देते हैं और हर बार आपको उन्हे अपना परिचय भी देना होता है। शुरू के लिए तो यह सब ठीक है परंतु कुछ समय के पश्चात यह सब आपको परेशान कर देगा। एक बात ध्यान में रखिए, इन सब चीजों से परेशान न होकर आप इन सबका आनंद लीजिए और यह आपके लिए सुनहरा मौका है अधिकाधिक सीनियर छात्रों के साथ संपर्क बढ़ाने का।
इसके विपरीत बिट्स की छात्रसंघ राजनीति ने सम्पूर्ण भारत की छात्र राजनीति के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। यहाँ की छात्र राजनीति की सबसे खास बात है यहाँ की चुनाव प्रक्रिया। और इसको और खास बनाता है यहाँ का चुनाव आयोग, जिसके सदस्य यहाँ के ही छात्र होते हैं। प्रचार अभियान से लेकर चुनाव परिणाम तक अनुशासन व पारदर्शिता के साथ चुनाव सम्पन्न करवाना, इसका पूरा श्रेय यहाँ के चुनाव आयोग को जाता है। आयोग द्वारा प्रचार अभियान के दौरान किसी भी प्रकार के अनैतिक कार्य को रोकने के लिए सख्त नियम बनाए गए हैं। जिसमें किस तरीके से प्रचार करना, इसकी समय सीमा इत्यादि। और अगर कोई प्रत्याशी इस आचार संहिता का उल्लंघन करता है तो उसके लिए इसमे सजा के भी कड़े प्रावधान हैं। जिसमे चुनाव प्रचार पर पाबंदी से लेकर पर्चा निरस्त करने तक के नियम है।
किन-किन का होता है चुनाव?-
सम्पूर्ण छात्रसंघ का प्रतिनिधित्व करने वाले अध्यक्ष व महासचिव का चुनाव होता है। इसके अलावा प्रति हॉस्टल से एक हॉस्टल प्रतिनिधि का भी चुनाव होता है जो संयुक्त छात्र समिति में अपने-अपने हॉस्टल का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रति हॉस्टल में एक कल्चरल सेक्रेटरी व स्पोर्ट्स सेक्रेटरी का भी चुनाव होता है जो की क्रमशः अपने हॉस्टल में सांस्कृतिक व खेल संबंधी गतिविधियों का दायित्व संभालते हैं। प्रति मेस के एक मेस प्रतिनिधि का भी चुनाव होता है, जिनके ऊपर मेस संबन्धित कार्यों का दायित्व होता है। चुनाव किसी का भी हो परंतु मुद्दा सभी का एक ही होता है- छात्र हितों की रक्षा व छात्रों की सुवधाओं में निरंतर सुधार। और इसे अमली जामा पहनाने के लिए हर प्रत्याशि घोषणा पत्र के तहत चुनाव में हिस्सा लेता है। घोषणा पत्र के हर बिन्दु को अमल में लाने के लिए संसाधन कैसे जुटाए जाएंगे, किस तरह उन पर कार्य होगा, इस सबके लिए चुनाव आयोग द्वारा सामूहिक चर्चा भी होती है जिसमे संस्था के आम छात्र भी हिस्सा लेते हैं। इन सब के कारण एक राष्ट्रीय अखबार ‘राजस्थान पत्रिका’ ने 25 अगस्त 2014 के प्रकाशित अंक में बिट्स के चुनाव पर एक लेख लिखा जिसमे यहाँ की चुनाव प्रक्रिया की तुलना अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव की चुनाव प्रक्रिया से की थी।
प्रथम वर्षीय छात्रों का पहला कॉलेज चुनाव-
संस्थान के नए-नवेले छात्रों के लिए यह चुनाव खास भी होगा और परेशान करने वाला भी। खास इसलिए कि सभी के लिए यह कॉलेज में आने के पहला चुनाव होगा व इसलिए भी क्योंकि कुछ के लिए यह पहली बार मतदान करने का मौका भी होगा। इसे लेकर छात्र काफी रोमांचित होंगे। परंतु यह चुनाव कुछ समय के बाद उनके लिए परेशानी का सबब भी बन जाएगा। इसका कारण यह है कि प्रत्याशियों द्वारा प्रथम वर्षीय छात्रों को सर्वाधिक टार्गेट किया जाता है। इसका मुख्य कारण है कि प्रत्याशी के इतिहास के बारे में आपको जानकारी नहीं होती है। इसलिए आपको लुभाने के लिए प्रचारक डोर टू डोर प्रचार करते हैं। जिससे प्रचारक छात्रों के कमरे पर आकर घंटों प्रत्याशी के पूर्व में किए गए कार्यों का विवरण देते हैं और हर बार आपको उन्हे अपना परिचय भी देना होता है। शुरू के लिए तो यह सब ठीक है परंतु कुछ समय के पश्चात यह सब आपको परेशान कर देगा। एक बात ध्यान में रखिए, इन सब चीजों से परेशान न होकर आप इन सबका आनंद लीजिए और यह आपके लिए सुनहरा मौका है अधिकाधिक सीनियर छात्रों के साथ संपर्क बढ़ाने का।