‘गुरुकुल’- आज यह नाम बिट्स मे बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है और इस मुकाम तक इसे पहुँचाने में एक व्यक्ति जिसका महत्त्वपूर्ण योगदान है वो हैं- सी कार्तिक| सभी जूनियर्स में कार्तिक भैया के नाम से मशहूर एवं व्यापारी माता-पिता के इकलौते पुत्र ने अब तक जो भी हासिल किया है वह सब कड़ी मेहनत तथा दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर किया है|
सन् 1996 में चौथी कक्षा के विद्यार्थी के तौर पर उन्हें बी॰एस॰एस॰ में दाखिला मिला| परन्तु समयोजन ना होने के कारण जल्द ही उन्हें परेशानी आने लगी| तब उनके छात्रावास के चीफ़ वार्डन श्री एम.सी.पाण्डेय तथा उनकी पत्नी श्रीमती पूनम पाण्डेय ने उनका माता-पिता के समान ख्याल रखा| विद्यालय काल से ही कार्तिक प्रतिभाशाली व शर्मीले थे| वे लगातार तीन बार राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी वाद-विवाद प्रतियोगिता के विजेता रहे तथा दो बार विद्यालय स्तर पर श्रेष्ठ अभिनेता| उन्हें शुरु से ही पढ़ाने का शौक था और जब उन्हीं के सहपाठी और विद्यार्थी प्रदीप कसाना को उनके साथ आदित्य बिरला छात्रवृत्ति मिली तब वे बहुत गर्वित हुए| बारहवीं कक्षा में वे विद्यालय मे अव्वल आए|
इसके पश्चात् वह कुछ कठिनाई के बाद बिट्स में प्रवेश लेने में सफल हुए| इसी दौरान उन्होंने ‘सारेगामापा’ के ऑडिशंस में दो चरणों में सफलता प्राप्त की, परन्तु पढ़ाई के कारण उन्होंने अपना नाम वापिस ले लिया| मयूज़िक क्लब के ऑडिशंस में उन्हें सफलता नहीं मिली| उसी वर्ष उन्होंने अपनी पहली प्रस्तुति ‘इनब्लूम’ के दौरान दी, जहाँ उन्होंने बहुत कुछ सीखा तथा उन्हें यह भी ज्ञात हुआ कि बिट्स में प्रतिभा की कमी नहीं है| अगले वर्ष वे एक सीनियर के कहने पर अनिल राय सर से मिले जिन्होंने उन्हें संगीत सिखाने की हामी भरी| अनिल सर ने उनके गायन में जो कमियाँ थी उन्हें दूर करने में कार्तिक की सहायता की| अनिल सर ने कार्तिक को यह भी सिखाया कि कभी अभिमान नहीं करना चाहिए, हमेशा अपने व्यवहार में सरलता रखनी चाहिए| तृतीय वर्ष में भी वे म्यूज़िक क्लब तथा रागमलिका में चयनित ना हो पाए| तब उन्होंने देखा कि और भी ऐसे छात्र हैं जिनमें सीखने की ललक है| इसी से उन्हें गुरुकुल बनाने का ख्याल आया जहाँ सब एक दूसरे से सीखें तथा संगीत सम्बंधित ज्ञान एक दूसरे के साथ बाँटें| यह कार्य मुश्किल था, कठिनाइयाँ भी बहुत आई पर अन्त में उनकी सफलता रंग लाई और 20 अगस्त 2008 को गुरुकुल की स्थापना की गई| इस कार्य में कई लोगों का योगदान रहा जिसमें मुख्य रूप से अनिल राय सर, एन.वी.एम राव सर, एस.के. वर्मा सर, उनके सहपाठी अभिजीत दत्ता व अनेक दोस्त एवम् जूनियर्स शामिल थे| गुरुकुल का शुरुआती समय मुश्किलों भरा था, न वाद्य यन्त्र और न ही कोई आर्थिक सहायता| लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी| हर मुश्किल समय में उन्होंने मोर्चा सम्भाले रखा, धैर्य से काम लिया एवं संगीत के प्रति समर्पण भाव को कम न होने दिया| उतार-चढ़ाव तो हमेशा आते रहतें हैं परन्तु हार ना मानने की भावना हमेशा होनी चाहिए|
अपने चतुर्थ वर्ष तक वे गुरुकुल के साथ पढ़ाई भी कर रहे थे और पढ़ाई में उन्होंने अपनी पकड़ कभी भी ढीली नहीं होने दी| विभिन्न परीक्षाओं में उत्तीर्ण होकर वे 5 विश्वविद्यालयों में स्वीकृत हुए परन्तु उनका मन जाने का नहीं था| एक मित्र के ईमेल के बाद वे फिर से पिलानी आ गए| पहले एम.एस.सी. के समय डॉ॰ राजकुमार गुप्ता व डॉ. अंशुमान डाल्वी की देखरेख में प्रोजेक्ट किया और तत्पश्चात डॉ॰ राजकुमार गुप्ता के अंतर्गत व डॉ. मंजुलादेवी की देखरेख में अपनी पी.एच.डी का कार्य शुरु किया, साथ ही गुरुकुल के कार्यो में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते रहे| इस सभी के दौरान उनके मित्र कपिल ढाका, डॉ॰ नेहा गुप्ता तथा मिस्टर एडविन ने उनका मनोबल ऊँचा रखा|
वर्ष 2011 में गुरुकुल छात्र संघ में शामिल हुआ| अब गुरुकुल पहले के मुकाबले ज्यादा व्यवस्थित है और शुरुआत से ही इसमें कुछ रिवाज़ हैं जैसे हर गुरुकुल संध्या में एक स्वरचित गान होता है तथा संस्थान के हर समारोह में गुरुकुल प्रस्तुति देता है| कार्तिक भैया अब तक अपने कई पी.एच.डी सम्बन्धित लेख प्रकाशित करवा चुके हैं, और कई लिखित एवं मौखिक प्रस्तुति दे चुके हैं| वे इसी सिलसिले में अपनी पी.एच.डी के प्रथम वर्ष में ही जापान भी गये थे|
कार्तिक भैया अपनी सफ़लता का श्रेय अपने माता-पिता को देते है| उन दोनों ने उनके लिए अनगिनत कुर्बानियाँ दी| उनकी माँ बारहवीं तथा पी.एच.डी के समय भी लम्बे समय तक पिलानी के प्रतिकूल मौसम में रुकी| संगीत के लिये भी उन्होंने ही नन्हे कार्तिक को प्रेरित किया था| उनके पिता ने भी उनका मनोबल कभी गिरने नहीं दिया व हमेशा मजबूत सहारा बन कर साथ रहे|
कार्तिक भैया ने अन्त में यही सन्देश दिया कि हमेशा बढ़ा सोचो और उसे पूर्ण करने में पूरी लगन से जुट जाओ| बुरी स्थितियाँ हमेशा आती है, हमें उनसे लड़ना सीखना चाहिए| उनका मानना है कि असफ़लताएँ मनुष्य को निखरने मे मदद करती हैं| सफ़लता मिलना कठिन है, पर सफ़लता मिलने पर खुद में अभिमान न आने दो| सबसे महत्वपूर्ण बात माता-पिता सच्चे मार्गदर्शक एवं शुभचिन्तक होते हैं, उनका हमेशा सम्मान करना चाहिए|
यह सेमेस्टर कार्तिक भैया का अन्तिम समेस्टर है| हम आशा करते हैं कि आगे का जीवन उनके लिए सुखमय हो व इसी के लिये उन्हें शुभकामनाएँ भी देते हैं|
सन् 1996 में चौथी कक्षा के विद्यार्थी के तौर पर उन्हें बी॰एस॰एस॰ में दाखिला मिला| परन्तु समयोजन ना होने के कारण जल्द ही उन्हें परेशानी आने लगी| तब उनके छात्रावास के चीफ़ वार्डन श्री एम.सी.पाण्डेय तथा उनकी पत्नी श्रीमती पूनम पाण्डेय ने उनका माता-पिता के समान ख्याल रखा| विद्यालय काल से ही कार्तिक प्रतिभाशाली व शर्मीले थे| वे लगातार तीन बार राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी वाद-विवाद प्रतियोगिता के विजेता रहे तथा दो बार विद्यालय स्तर पर श्रेष्ठ अभिनेता| उन्हें शुरु से ही पढ़ाने का शौक था और जब उन्हीं के सहपाठी और विद्यार्थी प्रदीप कसाना को उनके साथ आदित्य बिरला छात्रवृत्ति मिली तब वे बहुत गर्वित हुए| बारहवीं कक्षा में वे विद्यालय मे अव्वल आए|
इसके पश्चात् वह कुछ कठिनाई के बाद बिट्स में प्रवेश लेने में सफल हुए| इसी दौरान उन्होंने ‘सारेगामापा’ के ऑडिशंस में दो चरणों में सफलता प्राप्त की, परन्तु पढ़ाई के कारण उन्होंने अपना नाम वापिस ले लिया| मयूज़िक क्लब के ऑडिशंस में उन्हें सफलता नहीं मिली| उसी वर्ष उन्होंने अपनी पहली प्रस्तुति ‘इनब्लूम’ के दौरान दी, जहाँ उन्होंने बहुत कुछ सीखा तथा उन्हें यह भी ज्ञात हुआ कि बिट्स में प्रतिभा की कमी नहीं है| अगले वर्ष वे एक सीनियर के कहने पर अनिल राय सर से मिले जिन्होंने उन्हें संगीत सिखाने की हामी भरी| अनिल सर ने उनके गायन में जो कमियाँ थी उन्हें दूर करने में कार्तिक की सहायता की| अनिल सर ने कार्तिक को यह भी सिखाया कि कभी अभिमान नहीं करना चाहिए, हमेशा अपने व्यवहार में सरलता रखनी चाहिए| तृतीय वर्ष में भी वे म्यूज़िक क्लब तथा रागमलिका में चयनित ना हो पाए| तब उन्होंने देखा कि और भी ऐसे छात्र हैं जिनमें सीखने की ललक है| इसी से उन्हें गुरुकुल बनाने का ख्याल आया जहाँ सब एक दूसरे से सीखें तथा संगीत सम्बंधित ज्ञान एक दूसरे के साथ बाँटें| यह कार्य मुश्किल था, कठिनाइयाँ भी बहुत आई पर अन्त में उनकी सफलता रंग लाई और 20 अगस्त 2008 को गुरुकुल की स्थापना की गई| इस कार्य में कई लोगों का योगदान रहा जिसमें मुख्य रूप से अनिल राय सर, एन.वी.एम राव सर, एस.के. वर्मा सर, उनके सहपाठी अभिजीत दत्ता व अनेक दोस्त एवम् जूनियर्स शामिल थे| गुरुकुल का शुरुआती समय मुश्किलों भरा था, न वाद्य यन्त्र और न ही कोई आर्थिक सहायता| लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी| हर मुश्किल समय में उन्होंने मोर्चा सम्भाले रखा, धैर्य से काम लिया एवं संगीत के प्रति समर्पण भाव को कम न होने दिया| उतार-चढ़ाव तो हमेशा आते रहतें हैं परन्तु हार ना मानने की भावना हमेशा होनी चाहिए|
अपने चतुर्थ वर्ष तक वे गुरुकुल के साथ पढ़ाई भी कर रहे थे और पढ़ाई में उन्होंने अपनी पकड़ कभी भी ढीली नहीं होने दी| विभिन्न परीक्षाओं में उत्तीर्ण होकर वे 5 विश्वविद्यालयों में स्वीकृत हुए परन्तु उनका मन जाने का नहीं था| एक मित्र के ईमेल के बाद वे फिर से पिलानी आ गए| पहले एम.एस.सी. के समय डॉ॰ राजकुमार गुप्ता व डॉ. अंशुमान डाल्वी की देखरेख में प्रोजेक्ट किया और तत्पश्चात डॉ॰ राजकुमार गुप्ता के अंतर्गत व डॉ. मंजुलादेवी की देखरेख में अपनी पी.एच.डी का कार्य शुरु किया, साथ ही गुरुकुल के कार्यो में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते रहे| इस सभी के दौरान उनके मित्र कपिल ढाका, डॉ॰ नेहा गुप्ता तथा मिस्टर एडविन ने उनका मनोबल ऊँचा रखा|
वर्ष 2011 में गुरुकुल छात्र संघ में शामिल हुआ| अब गुरुकुल पहले के मुकाबले ज्यादा व्यवस्थित है और शुरुआत से ही इसमें कुछ रिवाज़ हैं जैसे हर गुरुकुल संध्या में एक स्वरचित गान होता है तथा संस्थान के हर समारोह में गुरुकुल प्रस्तुति देता है| कार्तिक भैया अब तक अपने कई पी.एच.डी सम्बन्धित लेख प्रकाशित करवा चुके हैं, और कई लिखित एवं मौखिक प्रस्तुति दे चुके हैं| वे इसी सिलसिले में अपनी पी.एच.डी के प्रथम वर्ष में ही जापान भी गये थे|
कार्तिक भैया अपनी सफ़लता का श्रेय अपने माता-पिता को देते है| उन दोनों ने उनके लिए अनगिनत कुर्बानियाँ दी| उनकी माँ बारहवीं तथा पी.एच.डी के समय भी लम्बे समय तक पिलानी के प्रतिकूल मौसम में रुकी| संगीत के लिये भी उन्होंने ही नन्हे कार्तिक को प्रेरित किया था| उनके पिता ने भी उनका मनोबल कभी गिरने नहीं दिया व हमेशा मजबूत सहारा बन कर साथ रहे|
कार्तिक भैया ने अन्त में यही सन्देश दिया कि हमेशा बढ़ा सोचो और उसे पूर्ण करने में पूरी लगन से जुट जाओ| बुरी स्थितियाँ हमेशा आती है, हमें उनसे लड़ना सीखना चाहिए| उनका मानना है कि असफ़लताएँ मनुष्य को निखरने मे मदद करती हैं| सफ़लता मिलना कठिन है, पर सफ़लता मिलने पर खुद में अभिमान न आने दो| सबसे महत्वपूर्ण बात माता-पिता सच्चे मार्गदर्शक एवं शुभचिन्तक होते हैं, उनका हमेशा सम्मान करना चाहिए|
यह सेमेस्टर कार्तिक भैया का अन्तिम समेस्टर है| हम आशा करते हैं कि आगे का जीवन उनके लिए सुखमय हो व इसी के लिये उन्हें शुभकामनाएँ भी देते हैं|